Editorial

उत्तराखंड को स्थाई सरकार के साथ स्थाई सीएम की भी ज़रुरत


देहरादून-  उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी को बड़ी जीत है। उसकी जीत की आंधी में कार्यवाहक सीएम हरीश रावत अपनी दोनों सीट हार गए। जिस कुमाऊं को वो अपना गढ बता रहे थे वहां वो तीन सीटों पर निपट गए।मोदी के करिश्मे और सत्ता विरोधी लहर ने उसे 11 सीटों पर समेट दिया।बीजेपी के वोट शेयर में ऐतिहासिक बढोत्तरी हुआ। 2012 में जहां वो 33.13%था वो 2017 में 46.5% हो गया मतलब 13% की बढोत्तरी जिसने उसे 56 सीटें दिलाकर तीन चौथाई बहुमत दो दिया और उम्मीद है कि वो 57 का आकड़ा भी एक सीट पर परिणाम घोषित करने के बाद छू लेगी। उत्तराखंड की जनता ने 2012 में किसी को भी स्पष्ट जनादेश नहीं दिया था जिस कारण 5 साल सूबे में राजनीतिक अस्थिरता दिखाई दी। राज्य में 5 साल में दो मुख्यमंत्री बने, खरीद फरोख्त की कोशिश हुई और सरकार बचाने के लिए जोड़तोड़ से लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश। राज्य को बने हुए 17 साल हो गए हैं। पर पहली बार जनता ने  किसी पार्टी को इतना बड़ा जनादेश दिया है।ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके.राज्य बनने के बाद अब तक प्रदेश को 8 मुख्यमंत्री मिले हैं।और एक सीएम नारायण दत्त तिवारी ने पूरे पांच साल तक काम किया है। 2002 में हुए उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था जिसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने अनुभव के आधार पर नारायण दत्त तिवारी को सूबे का सीएम बनाया जिन्होंने पांच साल तक सरकार चलाई पर उससे पहले 9 नवंबर 2000 को राज्य बनने के बाद बीजेपी ने डेढ साल के अंदर दो मुख्यमंत्री बदले, पहले नित्यानंद स्वामी और फिर भगत सिंह कोश्यारी।यही हाल 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव के बाद हुआ, बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाई पर पांच साल में तीन बार सीएम बने पहले भुवन सिंह खंडूरी को सीएम बनाया गया फिर रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता बीजेपी ने सौंपी पर चुनाव से ठीक पहले खंडूरी को उनकी ईमानदार छवि के चलते फिर सीएम बनाया गया जिसका असर राज्य के तीसरे विधानसभा चुनाव में भी दिखा। 2012 में बीजेपी ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए एक सीट कम जीती पर कांग्रेस ने पीडीएफ के साथ मिलकर सरकार बना ली।पीडीएफ में बीएसपी, यूकेडी और निर्दलीय विधायक शामिल हुए।लेकिन कांग्रेस ने सबको चौंकाते हुए हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे वि बहुगुणा को सत्ता सौंप दी जिसके बाद 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद ठीक 2014 लोकसभा से पहले हरीश रावत को गद्ददी सौंपी गई। पर सवाल ये है कि क्यों दोनों राष्ट्रीय पार्टीयां एक व्यक्ति को पांच साल तक सीएम क्यो नहीं रहने देती जिस कारण वो पूरे पांच साल तक राज्य में फोकस कर सके और हारने की स्थिति में कम समय का रोना ना रोए।पर 70 सीटों वाले सूबे में राजनीतिक स्थिरता को दरकिनाक कर पार्टी की अंदरूनी राजनीति और आक्रोश को थामने के लिए ये काम दोनों सरकारें करती रही है इस बार जनता को उम्मीद होगी कि पीएम मोदी राज्य में नई परिपाटी लिखेंगे और पहली बार बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री पूरे पांच साल तक टिककर जनता के विकास के लिए काम करेगा,बीजेपी को पूर्ण बहुमत देकर जनता ने स्थिर सरकार दे दी है पर राज्य के लोगों को स्थिर सरकार देना अब बीजेपी का कर्तव्य है ताकि पांच साल बाद जवाबदेही हो सके।

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