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उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने अंतर धार्मिक विवाह पर सुनाया बड़ा फैसला


नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सोमवार अंतर धार्मिक विवाह के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है । न्यायालय ने इस मामले में कहा है कि कई ऐसे मामले सामने आए है कि जिसमें अंतर धार्मिक विवाह केवल धर्म परिवर्तन करने के लिए रचा जाता है। लोग धर्म के नाम पर ऐसा ढोंग करते है।  न्यायालय ने इस प्रवृति पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार को मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के धार्मिक एक्ट की तर्ज पर एक्ट बनाने के लिए कहा है।

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने रुद्रपुर निवासी हिन्दू युवती की बिजनौर निवासी मुस्लिम युवक से शादी संबंधी याचिका को सुनने के बाद याचिका को निस्तारित कर दिया है । न्यायालय ने दो माह पूर्व हुई इस शादी को असंवैधानिक मानते हुए युवती की इच्छा पर उसे अपने परिजनों को पुलिस सुरक्षा में सौंप दिया है ।

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देश के पांच राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जबरिया या धोखे से धर्मांतरण रोकने के लिए कानून है।

देश के पांच राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जबरिया या धोखे से धर्मांतरण रोकने के लिए कानून है जबकि राजस्थान और अरुणाचल प्रदेश में ऐसा कानून बनाने की कोशिशें ठंडे बस्ते में पड़ी हैं।

मध्यप्रदेश : 1968 में बनाया था कानून

वर्ष 1968 में धर्म परिवर्तन पर कानून बनाने वाला उड़ीसा के बाद देश का दूसरा राज्य बना। वर्ष 2013 में कानून में संशोधन किया गया जिसके तहत धर्मांतरण से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया और जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर सजा का प्रावधान रखा गया।

छत्तीसगढ़ : मप्र के कानून को ही अपनाया

मध्यप्रदेश से अलग होने पर इस राज्य ने मप्र में बने कानून को ही अपनाया। 2006 में इसे संशोधित भी किया और धर्मांतरण से पहले जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने की अनिवार्यता की गई।

गुजरात : जिला प्रशासन की मंजूरी जरूरी

वर्ष 2003 में गुजरात पहला राज्य बना, जिसने धर्म परिवर्तन को कानूनी मान्यता देने के लिए धर्मांतरण से पहले जिला प्रशासन की मंजूरी अनिवार्य की थी। संभवत: इसी को छत्तीसगढ़ ने अपनाया।

हिमाचल प्रदेश : अनुमति का प्रावधान हटा

वर्ष 2006 में धर्मांतरण विरोधी कानून बना। इसे 2007 में दलित और ईसाई समुदाय ने चुनौती देने का मन बनाया। 2011 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्थानीय प्रशासन से पूर्व स्वीकृति के प्रावधान को हटा दिया।

उड़ीसा : देश में सबसे पहले बनाया कानून

वर्ष 1967 में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम लागू किया गया जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। यहां कानून की परिभाषा को अस्पष्ट बताया गया तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां 1968 में मप्र और उड़ीसा के धर्मांतरण विरोधी कानूनी को मान्यता मिली।

और इन राज्यों में इंतजार…

राजस्थान : राष्ट्रपति के पास लंबित बिल

वर्ष 2006 में राज्य विधानसभा ने धर्मांतरण का विरोध करने वाले विधेयक को मंजूर किया। लेकिन तत्कालीन राज्यपाल प्रतिभा पाटील ने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इसके बाद 2008 में एक अन्य विधेयक पारित हुआ जो राष्ट्रपति के पास लंबित है।

अरुणाचल प्रदेश : कानून का इंतजार

वर्ष 1978 में स्थानीय जनजातियों को प्रलोभन देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाया तो गया लोकिन वह अभी तक लागू नहीं हो सका। तमिलनाडु में धर्मांतरण विरोधी अधिनियम 2002 भंग कर दिया गया है जबकि इस समय उत्तराखंड, कर्नाटक और झारखंड में धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने के प्रस्ताव हैं।

 

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