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कविता-देशप्रेम


छोड़ो लालसा
निज़ स्वार्थ और
अधिकारों की
करो राष्ट्रहित में
कुछ कर्म समर्पण
और बलिदानो के |

ओ! प्रेयसी के दुत्कारे
ऐशोआराम के लालायित
निजहत्यातुर नौजवानों
मत करो जाया नमक देश का
और निज़ जननी की ममता
जाओ ! जाकर सीमा पर
दुश्मन से दो-दो हाथ करो |

आओ ! सब मिलकर करें
आज ये ‘भीष्म प्रतिज्ञा ‘
रहे ‘ ध्रुवसत्य ‘ सी आजादी
अटल 24-गुणी चक्रधारी
ये खादी का तिरंगा |

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सुनो ! सावन के कृष्णमेघ
शिवलिंग से पहले
देना तुम शीतलता उनको
जो सूखे कंठ भी
सीमाओं पर देशहित में
मुस्तैद खड़े |

रंग ना फीका पड़ने पाये
सदियों- सदियों यूँ ही
लहरता रहे तिरंगा |

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