News कविता -नेहबंध By Haldwani Live News Desk Posted on 14/12/2016 Share Tweet Share Email Comments रातें जब-तब मुझे मोतियों से स्वच्छ , रंगीन सुगंधित ,चमकीलें शब्द दे जातीं है सुबह होते ही पिरोने लगती हूँ इन्हें आशाओं के पक्के कलावे में इस नेहबंध को कर दूँगी उसे समर्पित ! जब वो समय की रेत पर तप के कुंदन सा दमकेगा लहरों से जूझ कर किनारे आ लगेगा !! Related Items:कलावे, कुंदन, शब्द, सुगंधित Share Tweet Share