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कविता -नेहबंध

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रातें जब-तब मुझे
मोतियों से
स्वच्छ , रंगीन
सुगंधित ,चमकीलें
शब्द दे जातीं है

सुबह होते ही
पिरोने लगती हूँ
इन्हें आशाओं के
पक्के कलावे में

इस नेहबंध
को कर दूँगी उसे
समर्पित !

जब वो
समय की रेत पर
तप के कुंदन
सा दमकेगा
लहरों से जूझ कर
किनारे आ लगेगा !!

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