
यूँ न नज़र अंदाज़ करना,
तू जुल्फ़े झटक मेरी मोहब्बत
को,
तेरा आशियाना आज भी मेरे साथ है
हर वक़्त,
खनक तेरी पायल की आज भी मेरे पास है,,
यूँ तो आफताब को समन्दर भी
कभी बुझा न सकेगा,
वेसे ही तेरी धड़कन को मेरे दिल से
न हटा सकेगा,,
जमाना ये सारा बुज़दिल हे – मेरी
दिल्लगी को न समझेगा,
समझ कर न दिल लगाया था , मेरे
दिल को क्या लगाए का जमाना,,
जब सुबह उसके चेहरे की मीठी
हंसी से हो,
शाम उसके लबों पर सजे,,
शम्मा उसकी जुल्फों को महकाए
मुझे हर पल दिलरुबा की याद जो
सताए,,
पायल जो सजी है मेरे दिल पर,
उसे आज जोर से खनकने दो,,
जिंदगी गुज़र जाए बगल से,
अब खुशी से उसकी बाहों में मरने दो,,

कवि-आशीष रिछारिया






