हल्द्वानी। देवभूमि उत्तराखण्ड में कई अनोखी परंपरा निभाई जाती है। भगवान की आस्था के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है। उनमें से एक है बग्वाल। रक्षा बंधन के दिन मां बाराही धाम देवीधुरा में बग्वाल हर साल ूड़ी धूमधाम से केली जाती है। फूल और फलों से खेले जाने वाले इस पर्व का हिस्सा बनने के लिए देश कई लोग आते है। इस वर्ष भी बग्वाल भी खूब धूमधाम से मनाई गई। सात मिनट तक चली बग्वाल के पहले तीन मिनट में रणबांकुरों ने एक दूसरे के खेमों में जमकर फलों की बारिश की लेकिन अंतिम चार मिनट में फूल-फल पत्थरों में तब्दील हो गए। इस वर्ष की बग्वाल में करीब 240 लोग घायल हुए इसमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं।
गुरुवार सुबह से रोमांचक बग्वाल देखने के लिए पूरा मंदिर परिसर भारी भीड़ से पूरी तरह से भरा हुआ था। एक बजे से चार खाम सात तोक के रणबाकुंरे ने रक्षा का धागा हाथों में बांधकर मां बाराही मंदिर की परिक्रमा कर ढोल नगाड़ों के साथ खोलीखांड़ दुर्वाचौड मैदान में उतरे। पूर्वी छोर से चम्याल खाम का नेतृत्व गंगा सिंह चम्याल, गहड़वाल खाम के मुखिया त्रिलोक सिंह बिष्ट और पश्चिमी छोर से वालिक खाम का जिम्मा ब्रदी सिंह बिष्ट और लमगड़िया खाम की कप्तानी वीरेन्द्र सिंह लमगड़िया ने की।। सभी चार खाम और सात थोकों के बग्वाली सिर में अलग-अलग रंग का साफा पहने अपने मोर्च को संभाले हुए थे।
दोपहर 2.17 मिनट में आचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी के संचालन में शंखनाद बजते ही बग्वाल शुरू हो गई। पहला फल चम्याल खाम की ओर से लमगड़िया खाम की ओर फेंका गया। फिर क्या था हवा में हर तरफ फल ही फल नजर आ रहे थे। ठीक तीन मिनट बाद अचानक रणबांकुरे अपनी ढ़ाल को संभालते नजर आए और फलों के साथ पत्थरों, डंडो की बारिश से खोलीखांड दुर्वाचौड़ मैदान पट गया। करीब 7 मिनट तक बग्वाल के मैदान में रक्त बहता रहा। मंदिर में ध्यान में बैठे पुजारी को एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहने का आभाष होते ही वह मैदान में आए।
पीत वस्त्र के परिधान में मंदिर के धर्मानंद पुजारी ने चंवर हिलाकर बग्वाल रोकने के संकेत दिए। बग्वाल रूकने के बाद भी फिर से दो मिनट रणबाकुंरे मैदान में डटे रहे। रणबांकुरों ने परंपरा का निर्वहन किया और एक दूसरे के गले मिले। डॉक्टर मनोज जोशी और आभा सिंह ने बताया कि बग्वाल में 240 लोग चोटिल हुए। जिसमें तीन महिलाएं भी शामिल रही।
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