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जो चाहा वही


शेष जीवन से
हमारी , यही तो
कामना थी ,कि-

किसी भटके को
राह दिखाते
पलायनवादी को
जूझना सिखाते
जीवन से हारे को
सांसो का मोल बताते

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अब ये उसकी अदा
वो ढाल बनाए
या तलवार ,
नैया बनाए
या पतवार ,
हमदर्द कहे !
या हमराज़

हम तो काम
आ ही रहे हैं
जो चाहा वही
निभा रहे हैं |

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