नई दिल्ली: स्वास्थ्य और समृद्धि के बीच की जगरूकता का पर्व है धनतेरस, जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। आध्यात्मिक मान्यताओं में दीपावली की महानिशा से दो दिन पहले जुंबिश देने वाला यह काल यक्ष यक्षिणीयों के जागरण दिवस के रूप में प्रख्यात है। यक्ष-यक्षिणी स्थूल जगत के उन चमकीले तत्वों के नियंता कहे जाते हैं, जिन्हें जगत दौलत मानता है। लक्ष्मी और कुबेर यक्षिणी और यक्ष माने जाते हैं। यक्ष-यक्षिणी ऊर्जा का वो पद कहा जाता है, जो हमारे जीने का सलीक़ा नियंत्रित करता हैं। सनद रहे कि धन और वैभव का भोग बिना बेहतर सेहत के सम्भव नहीं है, लिहाज़ा ऐश्वर्य के भोग के लिये कालांतर में धन्वन्तरि की अवधारणा सहज रूप से प्रकट हुई।
इसके नाम में धन और तेरस शब्दों के बारे में मान्यता है कि इस दिन खरीदे गए धन (स्वर्ण, रजत) में 13 गुना अभिवृद्धि हो जाती है। प्राचीन काल से ही इस दिन चांदी खरीदने की परंपरा रही है। चांदी चंद्रमा का प्रतीक है और चंद्रमा धन व मन दोनों का स्वामी है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक भी है और संतुष्टि का भी। शायद इसके पीछे की सोच यह है कि संतुष्टि का अनुभव ही सबसे बड़ा धन है। जो संतुष्ट है, वही धनी भी है और सुखी भी। धन का भोग करने के लिए लक्ष्मी की कृपा के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की भी जरूरत होती है। यही अवधारणा धन्वन्तरि के वजूद की बुनियाद बनती है। भगवान धन्वंतरि को हिंदू धर्म में देव वैद्य का पद हासिल है। कुछ ग्रंथों में उन्हें विष्णु का अवतार भी कहा गया है।
त्रयोदशी के दिन स्वास्थ्य के देवता धनवंतरि का जन्मोत्सव मनाया जाता है। कहा गया है कि पहला सुख जब सुन्दर काया अर्थात स्वस्थ्य शरीर ही आपका खजाना है। धन, दौलत, मकान, वाहन, कैरियर आदि बनाना आसान है, किन्तु आज की फास्ट-फूड पर आधारित जीवनशैली में शरीर को स्वस्थ्य रख पाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
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