नैनीताल: हिमानी बोहरा: आजकल देश के अलग-अलग हिस्सों में रामलीला चल रही है। रामलीला की तरफ हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का झुकाव अभी भी कायम है। उत्तराखण्ड के पहाड़ों की रामलीला पूरे देश में विख्यात है। लोग अभी भी बड़ी संख्या में रामलीला देखने जाते है। ज्योलीकोट के पीडब्लूडी मैदान पर चल रही रामलीला के लिए वहां के लोगों के बीच काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। बच्चों भी रामलीला में पाठ खेलने रूचि दिखा रहे है। हल्द्वानी लाइव ने जब स्थानीय लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि रामलीला को हम एक त्योहार की तरह मनाते है। सभी धर्म के लोग एक साथ बैठकर रामलीला का आनंद लेते है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में युवा पीढ़ी रामलीला से दूर रहती है जिस कारण हमारी संस्कृति भी गायब होती दिख रही है।
यह भी पढ़ें: 1830 से उत्तर प्रदेश के इस शहर में कुमाऊंनी में हो रही है रामलीला
स्थानीय निवासी उमेश पांडे ने बताया कि उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में कुमाऊंनी भाषा में रामलीला को आयोजन किया जाता है जिससे की पहाड़ के रहने वाले लोग अपनी भाषा के करीब रहते है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी भाषा अपनी भूमि से ही अपनी पहचान खो रही है। उन्होंने बताया कि पहाड़ के कुछ हिस्सों में कुमाऊंनी भाषा में रामलीला होती है। इस तरह के आयोजनों के बारे में युवाओं का जानना जरूरी है। इस तरह से वह अपनी भाषा के करीब आ सकते है। इसके लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। जिस तरह से युवा कुमाऊंनी वाइंस लोगों के दिल में खास जगह बना रही है उसी तरह रामलीला के मंच को भी युवाओं के बीच में लाना होगा। यूट्यूब और फेसबुक के माध्यम से हम रामलीला को लोगों तक पहुंचा सकते है। इससे युवाओं को रामायण का भी ज्ञान होगा और वह अपनी भाषा को भी जान पाएंगी। इस तरह के प्रयास से कुमाऊंनी भाषा को एक बार फिर जीवित किया जा सकता है।