हल्द्वानी: एक शोध के अनुसार भारत में सात से नौ प्रतिशत लोगों को बोलने, सुनने और समझने में परेशानी होती है। इसमें से 14 प्रतिशत समस्याएं केवल स्पीच डिसॉर्डर यानी बोलने से जुड़ी हुई हैं। स्पीच थेरेपिस्ट की मानें तो कम उम्र में ही इसके उपचार की ओर ध्यान देना समस्या को बढ़ने से रोक देता है। हल्द्वानी संस्कार ओडियोलॉजिस्ट के डॉक्टर बिजय कुमार के अनुसार बोलने से जुड़ी इस तरह की समस्याओं के साथ एक राहत की बात यह है कि सही समय पर इस पर काम हो, तो सौ प्रतिशत सुधार भी हो सकता है और यह भी कि अब लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं।
इनसे भी पड़ता है बोलने की क्षमता पर प्रभाव
मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे लोगों को भी बोलने से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। कुछ लोगों में स्पीच थेरेपी का अच्छा असर देखने को मिलता है। मजबूत इच्छाशक्ति की भी इसमें खास भूमिका है। कुछ अन्य समस्याएं होने पर भी बोलने की क्षमता पर असर पड़ने लगता है, जैसे- ‘ऑटिज्म ‘अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (एडीएचडी)
‘स्ट्रोक ‘मुख का कैंसर ‘गले का कैंसर ‘दिमाग से जुड़ी हंटिंग्टन्स डिजीज ‘डिमेंशिया ‘लकवा ‘आनुवंशिक कारण
बच्चों से बतियाएं, सुनाएं लोरीआजकल बच्चों का समय माता-पिता की कहानियों और लोरी की जगह टीवी व वीडियो गेम्स पर अधिक बीत रहा है। ऐसा करने पर बच्चों की चीजों को देखकर समझने की क्षमता तो विकसित होती है, पर भावनात्मक और संवाद क्षमता विकसित नहीं हो पाती। इससे बचने के लिए अभिभावकों को अपने बच्चों से बात करने, उन्हें किस्से, कहानी, लोरी सुनाने के लिए समय जरूर निकालना चाहिए। अगर बच्चा किसी शब्द को गलत बोल रहा है, तो उसकी नकल करने और उस पर लाड जताने की जगह उसके सामने खुद उस शब्द को सही तरीके से बोलना चाहिए।