रुद्रपुर- चुनावी बिगुल बजने के बाद चुनावों की तैयारिया शुरू हो गई है। कांग्रेस के साथ भाजपा की नजर किच्छा विधानसभा सीट पर है। मुख्यमंत्री हरीश रावत का किच्छा से विधानसभा चुनाव लडऩा लगभग तय माना जा रहा है। इससे किच्छा विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय राजनीति कर रहे करीब दो दर्जन दावेदारों को बड़ा झटका लगा है। हरीश रावत का राजनीतिक अनुभव को देखते हुए भाजपा किस प्रत्याशी पर दांव लगाएगी वो देखना दिलचस्प होगा। लेकिन एक बात साफ है कि रावत की मजबूती को देखते हुए भाजपा हरीश रावत के खिलाफ वीआईपी को उतार सकती है।
किच्छा विधानसभा से सीएम हरीश रावत का चुनाव लडऩा पहले से ही तय था, लेकिन हरीश रावत ने इसके पत्ते नहीं खोले थे। किच्छा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के निशान पर चुनाव लडऩे वालों की लंबी लिस्ट बन गई थी। इस लिस्ट में अजय तिवारी, पुष्कर राज जैन, हरीश पनेरू, संजीव कुमार सिंह, नगर पालिका अध्यक्ष महेंद्र चावला, सरवर यार खां, गणेश उपाध्याय, सुरेश गंगवार और नारायण बिष्ट के नाम प्रमुख थे। हालांकि हरीश रावत के किच्छा से चुनाव लडऩे की चर्चा तो होती रहीं, लेकिन कांग्रेसी इससे केवल अफवाह का नाम दे रहे थे। इस चुनावी लिस्ट में अधिकतर लोग हरीश रावत के करीबी बताए जाते हैं जिन्हें कांग्रेस का टिकट दिलाने का आश्वासन हरीश रावत देते रहे, लेकिन किच्छा से चुनाव लडऩे की इच्छा कभी किसी के सामने जाहिर नहीं की। इसके पीछे माना यह जा रहा है कि दावेदारों को टिकट का भरोसा देकर हरीश रावत किच्छा में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाए रखना चाहते थे। बुधवार को चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद यह तय हो गया है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत किच्छा से अपनी किस्मत आजमाएंगे। इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी है।
मुख्यमंत्री हरीश रावत के किच्छा विधान सभा सीट से चुनावी मैदान में उतरने से अभी तक किच्छा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट की दावेदारी करने वाले सभी नेताओं के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है। हरीश रावत किच्छा से चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उनके मुकाबले पर भाजपा किसी दमदार प्रत्याशी को उतारेगी या फिर हरीश रावत के सामने हार मानकर कमजोर प्रत्याशी पर दाव लगा देगी। वैसे भाजपा के पत्ते अभी तक डिब्बे में ही बंद है। देर से प्रत्याशियों की घोषणा भाजपा के लिए नुकसान देने वाला साबित हो सकता है। भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है। जबकि कांग्रेस ने मार्च 2016 में राजनीतिक संकट के समय साथ रहने वाले सभी विधायकों को फिर से चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है।