Uttrakhand government schools:-किसी भी राष्ट्र का विकास वहां की शिक्षा नीतियों पर निर्भर करता है। शिक्षा जितनी बेहतर होगी विकास की राह उतनी ही आसान होती जाएगी। उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य होने के नाते जिन समस्याओं को झेलता है, उन समस्याओं से निजात और यहां के विकास के लिए शिक्षा एक अहम भूमिका निभाती है। बेहतर शिक्षा यहां के युवाओं को यहां की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रेरित कर सकती है। पर उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों के हाल कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। सरकारी स्कूल और यहां की शिक्षा प्रणाली पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। और फिर ऐसी शिक्षा व्यवस्था सवाल के घेरे पर क्यों ना आए जहां पर विद्यालय के मुखिया ही गायब हो। राज्य में सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा यहां के राजकीय विद्यालयों में मुखियाओं की कमी से लगाया जा सकता है।
कुमाऊं के पांच पर्वतीय जिलों के 569 इंटर कॉलेजों में से मात्र 100 में ही प्रधानाचार्य हैं। बाकी के 469 इंटर कॉलेज प्रधानाचार्य के बिना ही संचालित किए जा रहे है। यही स्थिति राजकीय हाईस्कूलों में भी देखी जा रही है। इन पांचों पर्वतीय जिलों में कुल 356 हाईस्कूल हैं। इनमें मात्र 93 में ही स्थायी प्रधानाचार्य हैं। शेष 273 हाईस्कूल प्रधानाचार्य विहीन हैं। इन विद्यालयों की डोर यहां के प्रभारियों के हाथों सौंपी गई है। जिन स्कलों में प्रधानाचार्य मौजूद नहीं हैं, उन विद्यालयों में ये जिम्मेदारी किसी भी विषय के प्रवक्ता को दे दी जा रही है। इससे केवल विद्यालय का कार्यभार ही नहीं बल्कि छात्रों की संबंधित विषय की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है और इसका खामियाजा विद्यालय और विद्यार्थियों दोनों को भुगतना पड़ रहा है।
बता दिया जाए कि अल्मोड़ा के 145 इंटर कॉलेज में से 132 में प्रधानाचार्य नहीं है। यही नहीं भैंसियाछाना और धौलादेवी ब्लॉक के सभी इंटर कॉलेज में भी प्रधानाचार्य नजर नहीं आते। बात बागेश्वर जिले की करें तो 68 इंटर कॉलेज में से 58 बिना प्रधानाचार्य के चल रहे हैं। इनमें से केवल तीन इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य मौजूद हैं बाकी के इंटर कॉलेज में प्रभारी ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। पिथौरागढ़ जिले में भी यही हाल देखने को मिला। यहां 128 इंटर कॉलेज में से केवल 10 में ही स्थाई प्रधानाचार्य मौजूद थे जबकि 118 इंटर कॉलेज प्रभारी के सहारे चल रहे हैं। चंपावत जिले में 105 राजकीय इंटर कॉलेज में से केवल 14 और नैनीताल में 130 जीआईसी में से केवल 60 में ही प्रधानाचार्य नजर आते हैं। नैनीताल में बाकी 70 विद्यालयों प्रभारी के भरोसे कार्य कर रहे हैं।
राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले इन विद्यालयों में प्रधानाचार्य की कमी यहां की शिक्षा व्यवस्था को दर्शाती है। हालांकि सरकार द्वारा नियुक्ति के लिए विभाग से पत्राचार किया गया है और जल्द ही प्रधानाचार्य की कमी दूर करने की भी बात की गई है परंतु विद्यालयों की ये दुर्व्यवस्था शिक्षा व्यवस्था पर एक बहुत बड़ा सवाल उठाती है।