
देहरादून: हिमालय की गोद में बसे माउंट थरंग II (6025 मीटर) पर चढ़ाई के दौरान चार पर्वतारोहियों की एक टीम को मौसम की मार के आगे झुकना पड़ा, लेकिन उनका हौसला और विवेक अनमोल सीख छोड़ गया।
टीम में सुभजीत बनर्जी (अभियान नेता), अरुण नंदा, ममता जोशी, और निशांत जनकी शामिल थे। यह दल हिमाचल प्रदेश की दूरस्थ मियार घाटी में एक चुनौतीपूर्ण चढ़ाई के मिशन पर निकला था। यह वही पर्वत है, जिस पर अब तक केवल एक बार — वर्ष 2016 में एक ब्रिटिश-स्वीडिश टीम ने — सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी।
टीम ने चार कैंप स्थापित करने की योजना बनाई थी और 10 अक्टूबर तक अंतिम आरोहण का लक्ष्य रखा था। लेकिन 5 अक्टूबर को कैंप 1 पर पहुंचने के बाद अचानक पश्चिमी विक्षोभ से आए भारी बर्फ़ीले तूफ़ान ने सब कुछ बदल दिया। तापमान -13°C तक गिर गया, बर्फ़ इतनी घनी थी कि तंबू दबने लगे, खाना और ईंधन बर्फ़ में समा गए, और पानी की बोतलें जम गईं।
टीम तीन दिनों तक तूफ़ान में फँसी रही — ठंड, भूख और अनिश्चितता के बीच। कठिन परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने शांत रहकर स्थिति का आकलन किया। अंततः 6 अक्टूबर को दल ने पीछे लौटने का साहसिक निर्णय लिया। लगभग 7–8 घंटे तक वे बर्फ़ीली हवाओं और घोर ठंड से जूझते हुए सुरक्षित नीचे पहुँचे।
अभियान दल को सुरक्षा कारणों से ₹2.5 लाख से अधिक मूल्य के पर्वतारोहण उपकरण वहीं छोड़ने पड़े। यह निर्णय दर्दनाक था, लेकिन जीवन से बड़ा कुछ नहीं — इस बात को उन्होंने कर्म से सिद्ध किया।
टीम सदस्य ममता जोशी ने कहा,
“यह हार नहीं थी, यह सम्मान था — पहाड़ के लिए, जीवन के लिए, और उन लोगों के लिए जो हमारे लौटने का इंतज़ार कर रहे थे।”
उन्होंने आगे कहा,
“पहाड़ सिखाते हैं कि सफलता सिर्फ़ शिखर तक पहुँचना नहीं है। यह विनम्रता, धैर्य और संतुलन की परीक्षा है। हमने शिखर नहीं जीता, लेकिन खुद को ज़रूर पाया।”
अभियान को महिंद्रा कुमार ऑटोव्हील्स प्रा. लि., एनवॉय और बेसिफ़ाई जैसे प्रायोजकों का सहयोग मिला, जिन्होंने इस कठिन यात्रा को संभव बनाया।
यह अभियान भले ही शिखर तक न पहुँच सका, लेकिन इसने दिखा दिया कि सच्ची जीत कभी-कभी वापस लौटने के साहस में होती है — जब इंसान प्रकृति के आगे झुककर भी अपनी गरिमा और जज़्बे को ऊँचा रखता है।






