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उत्तराखंड में गढ़ा जा रहा है झूठा नैरेटिव, दोहरे मापदंडों पर उठ रहे हैं सवाल !

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देहरादून: देश में जब भी कोई राज्य या नेतृत्व विकास की दिशा में ठोस कदम बढ़ाता है, तब-तब कुछ समूह और प्लेटफॉर्म उस प्रयास को संदेह और नकारात्मकता के घेरे में लाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। यह सिलसिला नया नहीं है — बस पात्र और स्थान बदलते रहते हैं।

पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस राजनीतिक रणनीति के निशाने पर हैं। ताज़ा मामला भी इसी प्रवृत्ति को दिखाता है, जहां न्यूज़ लॉन्ड्री जैसे पोर्टल्स पर कांग्रेस के इशारे पर झूठे नैरेटिव गढ़ने के आरोप लगे हैं।

धामी सरकार के खिलाफ भ्रम फैलाने की कोशिश

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड ने पिछले वर्षों में निवेश, पर्यटन, कानून व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। राज्य सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू करने, लैंड जिहाद और अवैध धर्मांतरण पर सख्त कार्रवाई, 25,000 से अधिक सरकारी भर्तियाँ और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस जैसे फैसलों से सुर्खियाँ बटोरी हैं।

लेकिन जैसे-जैसे उत्तराखंड विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा, वैसे-वैसे भ्रम की राजनीति भी तेज़ हुई। आरोप है कि वामपंथी विचारधारा से प्रभावित कुछ मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने कांग्रेस की “टूलकिट” के तहत धामी सरकार के खिलाफ नकारात्मक रिपोर्टें प्रकाशित कीं, जिनका मकसद तथ्यों से अधिक भ्रम फैलाना था।

दोहरे मापदंडों पर सवाल

दिलचस्प बात यह है कि जिन प्लेटफॉर्म्स को उत्तराखंड सरकार के विज्ञापन खर्च या सूचना विभाग के कामकाज पर सवाल उठाने की आदत है, वे कांग्रेस शासित तेलंगाना सरकार के ₹776 करोड़ के सूचना विभाग बजट (2025) पर पूरी तरह चुप हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि यह चुप्पी दर्शाती है कि आलोचना का मकसद निष्पक्षता नहीं बल्कि राजनीतिक टारगेटिंग है।

पहले मोदी, फिर योगी… अब धामी

यह पैटर्न पहले भी देखा जा चुका है। जब प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश ने डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्वच्छ भारत मिशन जैसे अभियानों से विश्व पटल पर पहचान बनाई, तब भी कुछ समूह केवल कमियां खोजने में व्यस्त थे।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में कानून व्यवस्था और निवेश में सुधार को लेकर जनता में विश्वास बढ़ा, लेकिन उन्हीं प्लेटफॉर्म्स ने “छवि निर्माण” के नाम पर नकारात्मकता फैलाने की कोशिश की। अब वही खेल उत्तराखंड में खेला जा रहा है — जहां कांग्रेस समर्थित समूहों द्वारा जनता के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास किया जा रहा है।

सूचना और दुष्प्रचार में फर्क जरूरी

लोकतंत्र में सवाल पूछना महत्वपूर्ण है, लेकिन सवालों के पीछे की मंशा भी उतनी ही अहम होती है।
अगर उद्देश्य विकास को रोकना या जनता के बीच भ्रम फैलाना बन जाए, तो यह लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर करता है।
जनता के लिए यही सबसे बड़ा सबक है — सूचना और दुष्प्रचार में फर्क समझना ही सच्ची जागरूकता है।

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