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अल्मोड़ा निवासी सुधा मनराल को कनाडा में मिला सम्मान, उत्तराखंड के लिए बोली दिल की बात


Sudha Manral Story:- कहते है उम्र का सफलता से कोई वास्ता नहीं होता। मन में लगन और कुछ कर दिखाने का हौसला हो तो रास्ता कितना ही मुश्किल क्यों ना हो, मंजिल मिल ही जाती है। इसी बात को सिद्ध किया है मूल रूप से अल्मोड़ा उत्तराखंड की रहने वाली सुधा मनराल जी ने। कनाडा में आयोजित राष्ट्रीय सीनियर्स डे 2023 में वयोवृद्ध सुधा मनराल को उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन बी.सी.सी.डी.ए. की ओर से Vancouver में किया गया था, जहां श्रीमती सुधा मनराल जी को समाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने हेतु Certificate of Appreciation प्रदान किया गया। बीसी कलचरल डायवर्सिटी एसोसिएशन (BC Cultural Diversity Association) की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन पिंक पर्ल चाइनीज सी—फूड रेस्टोरेंट, कनाडा में किया गया था। इस कार्यक्रम में अलग अलग देशों से आए बुजुर्ग नागरिकों को उनके उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया था। भारत से ये सम्मान प्राप्त करने वाली 82 वर्षीय सुधा मनराल एकमात्र नागरिक थीं। आयोजकों ने उनके उल्लेखनीय कार्यों को बताते हुए सभी लोगों के बीच उनका संक्षिप्त परिचय भी दिया।

कौन है सुधा मनराल?

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श्रीमती सुधा मनराल प्रख्यात साहित्यकार स्व. बलवंत मनराल की पत्नी हैं। उत्तराखंड प्रदेश में वह अपने समाजिक कार्यों के लिए काफ़ी जानी जाती हैं। सोशल मीडिया से प्रभावित हो रहे इस युग में सुधा मनराल वो हस्ती हैं जो नि:स्वार्थ भाव व खामोशी से समाज सेवा के कार्य में लगी हुई हैं। वो कहती है कि प्रसिद्धि प्राप्त करना उनका उद्देश्य नहीं है बल्कि वो ये सेवा आत्म-सुख के लिए करती हैं।

सुधा मनराल का जीवन

जितना सरल सुधा मनराल का व्यक्तित्व है, उतना ही जटिल उनका जीवन रहा। लेकिन वो हिम्मत और हौसले का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बन कर सामने आई। उत्तराखंड राज्य में नरसिंहबाड़ी अल्मोड़ा के निवासी सुधा मनराल और उनके पति बलवंत मनराल शुरू से ही शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र से जुड़े रहे हैं। पति बलवंत मनराल का नाम प्रख्यात लेखकों में से एक है। सुधा मनराल ने अपनी सेवा 12 जनवरी 1975 को सीनियर सेकेंडरी स्कूल बिजवासन दिल्ली से शुरू की थी। इसके बाद उन्होंने लगभग 21 साल तक दिल्ली के कई स्कूलों में पढ़ाया। इस ही बीच वो एक समाज सेविका के रूप में भी उभर कर आई।साल 1987 में आए स्ट्रोक के कारण उनके पति चलने-फिरने में पूरी तरह असमर्थ हो गये। शारीरिक विकलांगता के कारण उनके पति को नौकरी छोड़नी पड़ी और पति के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट के कारण कुछ समय बाद सुधा मनराल ने भी अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह अपने पति और बच्चों के साथ दिल्ली छोड़कर अपने निवास स्थान अल्मोड़ा आ गई। इस कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा का ध्यान रखा और अपने बीमार पति की सेवा भी की। आज उनके तीन बेटों में सबसे बड़े आशीष मनराल वर्तमान में कनाडा में एक व्यवसायी हैं, मंझले बेटे मनीष संयुक्त अरब अमीरात में एक कंपनी में कार्यरत हैं और सबसे छोटे बेटे दीपक मनराल एक पत्रकार हैं। वर्तमान में सुधा मनराल अपने बेटों के साथ रह रही हैं। वह कहती हैं कि विदेशी धरती पर रहने के बावजूद उनकी आत्मा केवल अल्मोड़ा में ही बसती है। उनका कहना है कि वह अंतिम समय में देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में ही अपने प्राण त्यागना चाहती हैं।

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