देहरादून: आयुर्वेद चिकित्सकों पर केन्द्र सरकार की मेहरबानी एलोपैथिक विधा के चिकित्सकों को रास नहीं आ रही है। पहले आयुर्वेद चिकित्सकों को एलोपैथिक दवाओं के जरिए इलाज और अब ऑपरेशन की छूट देने के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने इसका विरोध करने का निर्णय लिया है। आईएमए का कहना है कि आयुर्वेद को बढ़ावा देने और आयुष पद्धति से सर्जरी करने पर कोई विरोध नहीं है, लेकिन आयुष के नाम पर ऐलोपैथी चिकित्सा एनेस्थीसिया व दवाईयों का इस्तेमाल किया जाएगा। इस मिश्रित पैथी से इलाज करने से मरीजों की जान को खतरा होगा। खिचड़ी मेडिकल शिक्षा के खिलाफ शहर के सभी डॉक्टर 11 दिसंबर को कार्य बहिष्कार पर रहेंगे।
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बता दें इस दिन ओपीडी बंद रहेगी। डॉक्टर सामान्य मरीज नहीं देखेंगे। इमरजेंसी मरीजों के लिए अस्पतालों का द्वार खुला रहेगा। इसके पूर्व आठ दिसंबर को भी इसके विरोध में आईएमए के सदस्य सांकेतिक आंदोलन करेंगे। इस दिन 20 डॉक्टर दो घंटे ओपीडी बंद कर सीतापुर आई हास्पिटल स्थित आईएमए कार्यालय पर दोपहर 12 से दो बजे तक प्रदर्शन करेंगे। यह जानकारी एसोसिएशन के पूर्व सचिव डा. राजेश गुप्ता ने दी। इधर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि भारत में प्राचीनकाल से शल्य चिकित्सा होती आई है। अनेक अंग प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किए गए।
आयुर्वेद महाविद्यालयों में स्नात्तकोत्तर स्तर तक शल्य चिकित्सा पढ़ाई जा रही है। एमएस की डिग्री लेकर अनेक चिकित्सक देश के अनेक चिकित्सालयों में शल्य चिकित्सा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि शल्य चिकित्सा भारत में अति प्राचीनकाल से है। एलोपैथी तो अभी हाल में जन्मी पद्धति है। कहा कि भगवान शिव ने राजा दक्ष और गणेश के कटे सिर को अंग प्रत्यारोपण विधि से विश्व में सबसे पहले जोड़े थे। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा का तमाम शास्त्र है। आयुर्वेदिक महाविद्यालयों में उन्हीं का शल्य पढ़ाया और सिखाया जा रहा है। महाविद्यालयों में एमडी और एमएस की डिग्रियां लंबे समय से दी जा रही हैं।
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