Baba Boukhnag, Silkyara, Uttarkashi :- राज्य उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां कदम कदम पर मंदिर और अनेक मान्यताएं देखने को मिलती है।यही कारण है कि राज्य उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। ये देवभूमि जितनी सुंदर है उतने ही चमत्कार और रहस्यों से भरी हुई भी है। देवी देवताओं के प्रति इस देवभूमि और यहां के वासियों का विश्वास अटूट है।यहां के देवी देवता केवल अपने भक्तों की नहीं बल्कि यहां की भूमि, पहाड़ों और प्रकृति की भी रक्षा करते हैं।यह देवी देवता लोक देवता, भूमियाल देवता और रक्षक देवता के नाम से जाने जाते हैं। उत्तराखंड में कई ऐसी कहानियां सुनने को मिलती हैं, जहां उत्तराखंड वासियों की अटूट श्रद्धा उनकी रक्षा का प्रमाण बनती हैं। वहीं दूसरी तरफ उनके द्वारा की गई गलतियों को दंड भी मिलता है।उत्तराखंड के उत्तरकाशी टनल हादसे में सबसे ज्यादा चर्चा में आने वाले एक ऐसे ही आराध्य देव से आज हम आपको रूबरू करवाने जा रहे हैं। 12 नवंबर को उत्तरकाशी के सिलक्यारा में हुए टनल हादसे में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहे बाबा बौखनाग देवता, वही देवता हैं जिनके आगे विदेशी मशीन भी फेल हो गई और सरकार तक को भी नतमस्तक होना पड़ा।
कौन हैं बाबा बौखनाग देवता?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाबा बौखनाग भगवान श्री कृष्णा के वासुकी नाग के अवतार माने जाते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बसे गांवों में बाबा बौखनाग को नाग देवता के रूप में पूजा जाता है। नाग देवता के रूप में पूजे जाने वाले बौख नाग देवता को लोग उत्तरकाशी क्षेत्र के इष्ट और रक्षक के रूप में भी जानते हैं। उत्तरकाशी के नौगांव के राड़ी टॉप इलाके में,चारों तरफ़ से पहाड़ों से घिरा बाबा बौखनाग का एक विशाल मंदिर है, जहां हर साल एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में 22 गांव के लोग सम्मिलित होकर बाबा बौखनाग से मन्नत मांगते हैं। खासतौर पर इस मेले में निसंतान दंपतियों और नव विवाहितों द्वारा नंगे पैर सम्मिलित होने की प्रथा है। कहते हैं कि ऐसा करने से बाबा बौखनाग उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
बाबा बौखनाग और सिलक्यारा टनल
बाबा बौख नाग उत्तरकाशी के सिलक्यारा क्षेत्र के लोगों के लोक देवता व रक्षक देव माने जाते हैं। यही नहीं, वे सिलक्यारा सहित तीन अन्य गांव के भी ईष्ट देव हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जहां पर वर्तमान में सिलक्यारा टनल बना हुआ है वहां पर पहले बाबा बौखनाग का एक पौराणिक मंदिर था, जिसे सिलक्यारा सहित तीन गांव के लोग पूजते थे। इस मंदिर में हर साल एक भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता था। मगर जब टनल का काम शुरू हुआ तो कंपनी ने मंदिर को उसकी जगह से हटा दिया। इस गलती से नाराज़ हुए बाबा बौखनाग का प्रकोप लोगों को इस टनल हादसे के रूप में झेलना पड़ा।
श्रमिकों पर हुई बाबा बौखनाग की कृपा
12 नवंबर से टनल में फंसे श्रमिकों को बचाने के जब सारे प्रयास नाकाम हो गए, तब ग्रामीणों के कहने पर सरकार द्वारा श्रद्धा का रास्ता चुना गया। सरकार द्वारा ग्रामीणों के कहने पर टनल के बाहर एक नए मंदिर का निर्माण किया गया। इसके तुरंत बाद से ही राहत एवं बचाव दलों द्वारा किए गए सभी प्रयासों का सकारात्मक परिणाम नज़र आने लगा। और 17 दिनों बाद सुरंग में फंसे सभी 41 लोगों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। यह बौखनाग देवता का ही आशीर्वाद था कि उत्तराखंड का एक बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया।
सिलक्यारा में बनेगा बौखनाग का दिव्य मंदिर
27 नवंबर,सोमवार को टनल के मुहाने पर गोरखनाथ देवता मंदिर के पास शिव की आकृति लोगों को नजर आई थी, जो काफ़ी चर्चा का भी विषय बनी ,और फिर वहीं अगले दिन मंगलवार को यह मिशन सफल हो गया। इस हादसे के बाद स्थानीय लोगों के साथ ही सुरंग के अंदर फंसे सभी 41 लोगों और उनके परिजनों की आस्था बाबा बौखनाग के प्रति और भी अधिक बढ़ गई। इस ही कड़ी में 28 नवंबर ,मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय राज्य मंत्री वीके सिंह स्थानीय बौखनाग देवता के मंदिर में उनके प्रति आभार प्रकट करने गए थे। इसके बाद धामी ने प्रेसवार्ता में कहा कि सिलक्यारा सुरंग के मुहाने पर स्थित बाबा बौखनाग के छोटे मंदिर को भव्य बनाया जाएगा।