
Uttarakhand: Diwakar Bhatt: UKD: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जुझारू सेनानी, उक्रांद के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट जी के निधन से पूरे राज्य में शोक की गहरी लहर दौड़ गई है। उनका जाना केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व का अंत नहीं है, बल्कि उस संघर्ष–यात्रा का विराम है जिसने उत्तराखंड की अस्मिता, पहाड़ की पीड़ा और राज्य निर्माण की आग को वर्षों तक प्रज्वलित रखा।
दिवाकर भट्ट को “उत्तराखंड फील्ड मार्शल” की उपाधि मिली थी। यह सम्मान उनके अदम्य साहस, तीखे तेवर और अडिग संघर्ष का परिणाम था। उन्होंने अपना पूरा जीवन उत्तराखंड आंदोलन, पहाड़ की समस्याओं, पलायन, वन कानूनों और क्षेत्रीय असमानताओं के समाधान के लिए समर्पित कर दिया। उनकी आवाज, उनका नारा — “घेरा डालो–डेरा डालो” — आज भी राज्य आंदोलन की आत्मा में गूंजता है। दिवाकर भट्ट का जीवन एक आंदोलनकारी की तपस्या, एक नेता की दृढ़ता और एक पहाड़ी के जज्बे की कहानी है। वे चले गए, लेकिन उनका संघर्ष—उनकी आवाज—उत्तराखंड की सदियों पुरानी पहाड़ी चेतना में हमेशा जिंदा रहेगी।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 01 अगस्त 1946
- जन्मस्थान: सुपार गांव, पट्टी बडियार गढ़, जिला टिहरी गढ़वाल
- लंबे समय से हरिद्वार में निवासरत रहे।
आंदोलन से जुड़ाव की शुरुआत
- 1965 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में पहली बार उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े।
- यहीं से उनके जीवन ने आंदोलन, संघर्ष और संगठन निर्माण की राह पकड़ ली।
संगठनात्मक भूमिका
- 1976 में ‘उत्तराखंड युवा मोर्चा’ का गठन किया, जिसने आगे चलकर पूरे राज्य आंदोलन की दिशा तय की।
- 1980 से लगातार तीन बार कीर्तिनगर ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए।
- 1980 में पहली बार देवप्रयाग विधानसभा से चुनाव लड़ा।
प्रमुख आंदोलन और संघर्ष
1. श्रीयंत्र टापू आंदोलन (1995)
उत्तराखंड आंदोलन को नई दिशा देने वाले बड़े अध्यायों में से एक।
2. खैट पर्वत उपवास (1995)
- 80 वर्षीय सुंदर सिंह के साथ 6 किमी कठिन चढ़ाई पार कर खैट पर्वत पर उपवास।
- स्थिति गंभीर होने पर केंद्र सरकार को वार्ता के लिए बुलाना पड़ा (15 दिसंबर 1995)।
- समाधान नहीं मिलने पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर लंबा उपवास।
3. 1994 के बड़े आंदोलन
- नैनीताल और पौड़ी में व्यापक जनांदोलन।
- प्रमुख मांगें:
- उत्तराखंड राज्य निर्माण
- वन कानूनों में संशोधन
- पंचायत परिसीमन क्षेत्रफल आधारित
- केंद्रीय सेवाओं में पहाड़ी क्षेत्रों को 2% आरक्षण
- हिल कैडर का सख्ती से पालन
- क्षेत्रफल आधारित आरक्षण की व्यवस्था
उनका दिया हुआ नारा “घेरा डालो – डेरा डालो” पूरे राज्य आंदोलन की पहचान बन गया।
राजनीतिक जीवन
- 2007 में देवप्रयाग विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए।
- राज्य सरकार में राजस्व एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री बने।
- मंत्री रहते हुए भी गांवों से बढ़ते पलायन और पहाड़ की समस्याओं पर निरंतर मुखर रहे।
उपाधियाँ और सम्मान
- 1993 में इंद्रमणि बडोनी जी ने उनके संघर्षों को मान्यता देते हुए उन्हें
“उत्तराखंड फील्ड मार्शल” की उपाधि प्रदान की।
अंतिम समय
- लंबे समय से अस्वस्थ और लगातार पाँच ब्रेन स्ट्रोक झेलने के बाद
- 26 नवंबर 2024 (मंगलवार) को हरिद्वार स्थित शिवालोक कॉलोनी में उनका निधन हुआ।






