देहरादून: हिम्मत और कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो मुश्किले रास्ता नहीं रोक सकती। यह बात दून की रहने वाली आस्था पर सटीक बैठती है। जो एक आम इंसान सपने मे नहीं सोच सकता उसे आस्था ने कर तो दिखाया ही साथ ही विश्व पटल पर एक मांग को पुरजोर तरीके से पैरवी कर सबको चौंका दिया है।
आपकों बता दे की आस्था देहरादून की रहने वाली हैं, 16 वर्षीय आस्था ना तो देख सकती है और ना ही सुन सकती है। बावजूद इसके उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की एक प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर पूरी दुनिया में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। आस्था ने जनगणना में बधिर-नेत्रहीन दिव्यांगों की गिनती जनगणना में न करने का विरोध करते हुए जोरशोर से मुद्दा उठाया था।
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इस प्रतियोगिता का नाम ‘यूएन वर्ल्ड डेटा फोरम कंपटीशन’ था जिसका विषय डेटा (आंकड़े) क्यों जरूरी है’। पूरी दुनिया के 15 से 24 साल के युवाओं ने इस प्रतियोगिता मे हिस्सा लिया था। आस्था ने एक वीडियो के जरिए इसमें हिस्सा लिया और बताया था कि दो दिव्यांगताओं से ग्रस्त लोगों को भी जनता का हिस्सा मानना क्यों जरूरी है। साइन लैंग्वेज या इशारों के जरिए इस वीडियो में आस्था ने कहा कि ‘मैं आप सभी लोगों के लिए एक उदाहरण हूँ।
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एक मिनट लंबे वीडियो मे आस्था ने कहा की दुनिया में हमारे जैसे अनेकों लोग है आप हमें जनगणना में शामिल तो कीजिए और दूसरों को प्रेरित करने का मौका दीजिए। आस्था ने आगे अपने संदेश मे कहा हम छोटी सी चिंगारी जरूर हैं लेकिन हम पूरे देश को रौशन करने की क्षमता रखते हैं। हम पर भरोसा करके तो देखिए … एक बेहतर दुनिया के लिए हमें अपने साथ जोड़िए तो सही।’ आस्था बढ़े होकर शिक्षिका बन कर अपने जैसे लोगों की मदद करना चाहती हैं।