हल्द्वानी: फिल्म जगत से जुड़ने के लिए लोगों को मुंबई का सफर तय करना पड़ता है। उत्तराखंड के कई युवा इस सपने के साथ मायानगरी पहुंचते हैं। जाने वालों की संख्या और कामयाबी होने वालों की संख्या का फर्क कुछ ज्यादा है। युवाओं ने इस पर सोचना भी शुरू कर दिया है। वह कहते हैं कि मुंबई में फिल्म बनाना महंगा तो उत्तराखंड को अगले विकल्प के रूप में देख सकते हैं। युवाओं में इस तरह की ऊर्जा का संचार करने की कोशिश लेखक-निर्देशक कंचन पंत कर रही है। वह मुंबई से उत्तराखंड लौटी है। वह कहती हैं कि एक दिन उत्तराखंड और इसके नागरिकों की प्रतिभा पूरे देश को देखने को मिलेगी।
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पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट जिले की मूल निवासी कंचन पंत कई सालों से मॉस मीडिया से जुड़ी हैं। उन्होंने न्यूज़ चैनल एनडीटीवी में एक पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया और पिछले 8 साल से रेडियो-टीवी लेखन से जुड़ी हैं। कई पाठक उन्हें ‘यादों का इडियट बॉक्स विद नीलेश मिश्रा’ में लिखी कहानियों से जानते हैं। लेखक और क्रिएटिव हेड के तौर पर कंचन ने रेडियो के कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन किया है। वो बिग एफएम, रेड एफएम, सावन आदि के लिए 350 से अधिक कहानियां और सोनी और ज़ी टीवी के लिए पटकथाएं लिख चुकी हैं। लड़कियों की शिक्षा के लिए यूनिसेफ के लिए तैयार किए गए उनके एक कैंपेन की चर्चा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हुई है।
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कंचन कहती हैं कि फिल्म इंडस्ट्री ने फिल्म मेकिंग को लेकर हौव्वा खड़ा किया हुआ है जिससे नए और प्रतिभाशाली लोग उस तरफ़ जाने की हिम्मत ना कर पाएं। लेकिन उनका मानना है कि प्रतिभा, लगन और एक-दूसरे का साथ देने का जज़्बा हो तो फिल्में बनाना इतना भी मुश्किल नहीं है।
कंचन इन दिनों अपनी कंपनी ZeroShots की पहली फिल्म के प्री-प्रोडक्शन में व्यस्त हैं। आगे की योजनाओं के बारे में कंचन बताती हैं कि उनकी कोशिश है कि लोग उत्तराखंड की खूबसूरती, यहां की संस्कृति, यहां की मुद्दों को फिल्मों में देखें और प्रदेश को शूटिंग की लोकेशन के तौर पर वो जगह हासिल हो, जो कभी कश्मीर को मिली थी। इसके अलावा वो हर फिल्म में यहां के युवाओं को फिल्म के अलग-अलग डिपार्टमेंट्स में ट्रेनिंग देना चाहती हैं ताकि आने वाली फिल्मों में वही युवा ZeroShots के साथ व्यावसायिक तौर पर जुड़ सकें।
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फिल्में बनाना बहुत खर्चीला काम है और फिल्मों में काम मिलना किस्मत की बात है। इस धारणा के कारण प्रदेश के युवा प्रतिभा होते हुए भी फिल्म लाइन में करियर बनाने के बारे में नहीं सोच पाते। कुछ गिने चुने कलाकार अगर किसी तरह मुंबई पहुंच भी गए तो सालों तक संघर्ष करने के बाद थक-हार कर कोई छोटी मोटी नौकरी करने लगते हैं। यानी फिल्म इंडस्ट्री उत्तराखंड के युवाओं के लिए बहुत दूर है। लेकिन अगर फिल्म मेकर्स ख़ुद यहां चले आएं तो? उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में फिल्म मेकिंग से जुड़े लोगों, लेखक, सिनेमैटोग्राफर, एडीटर, गायक, संगीतकार और कलाकारों से कंचन ने अपनी इस मुहिम से जुड़ने और साथ मिलकर फिल्में बनाने का आह्वान किया है।