हल्द्वानी: हमारी कोशिश रहती है कि जो लोग उत्तराखंड के लोगों को अपने काम से जोड़े रखें, उन्हें आपके बीच लाया जाए। उत्तराखंड के लोग देश के कोने कोने में हैं। क्या पता हमारा ये प्रयास लोगों को मिला दे और राज्य के लोग ऐसे ही प्रगति के मार्ग पर चलते रहें। कुछ दिन पहले हमने मडुवे से पिज्जा बना रहे विनय बिष्ट के बारे में आपको बताया था जो हल्द्वानी में कार्य कर रहे हैं। आज हम आपकों मडुवे के रोल के बारे में बताने जा रहे हैं। यह काम उत्तराखंड में नहीं बल्कि दिल्ली में होता है।
19 साल का संघर्ष
दिल्ली के बुराड़ी में जसपाल भंडारी गढ़वाल जायका नाम की ट्रॉली चला रहे हैं। वह लोगों को मडुवे से बने रोल खिला रहे हैं। यानी उत्तराखंड का युवक दिल्ली के लोगों को मडुवे से परीचित करा रहा है। हालांकि जसपाल भंडारी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। केवल 15 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था और 19 साल से वह होटल लाइन में काम कर रहे हैं।
परिवार का एकलौता कमाने वाला बेटा
पौड़ी जिले गांव जोगीडा ब्लॉक नैनीडांडा निवासी जसपाल सिंह भंडारी पुत्र स्व नाम मंगल सिंह भंडारी भी गांव से दिल्ली काम के लिए निकले थे। उस वक्त उनकी उम्र 15 साल थी। वह होटल से जुड़ गए। वहां उन्होंने करीब 16-17 काम किया। इस दौरान उन्होंने होटल का सारा काम सीख लिया और एक कुशल कारीगर बन गए थे। जसपाल कहते हैं कि मैं केवल बर्तन नहीं धोना चाहता था। एक ना एक दिन मेरे ध्यान में अपना काम करने की सोच थी। दिल्ली आने के बाद होटल लाइन से जुड़ा और सारा काम सीखा। जसपाल के परिवार में कुल 10 सदस्य हैं। वह परिवार के एकलौते कमाने वाले हैं। वह दिल्ली में अपनी मां, पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं।
दिल्ली में मडुवे के पकवान
जसपाल भंडारी ने बताया कि साल 2020 में कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लग गया। उन्होंने कहा कि कोरोना ने होटल लाइन को बर्बाद कर दिया। मुझे अपने परिवार के लिए कुछ और करना चाहता था। इसी दौरान उन्हें मडुवे से बना फास्टफूड स्टॉल खोल दिया जो बुराड़ी हीरा स्वीट्स के पास हैं। बुराड़ी में वह लोगों को EGG रोल, वेज रोल, पनीर रोल व अन्य तरह के रोल बनाकर खिलाते हैं। उन्होंने बताया कि स्टॉल में अन्य व्यंजनों के होना भी जरूरी है। इसके लिए नूडल्स भी वह बनाते हैं, जिसमें वह जख्या का तड़का लगाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता है।
पहाड़ के महानगरों में करेंगे विख्यात- ये है जसपाल का सपना
जसपाल कहते हैं कि वह गांव दाल व अन्य उत्पाद भी दिल्ली में बेचते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पैदा होना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। देवभूमि में फसल नहीं अमृत पैदा होता है। मडुवा, भट्ट व अन्य दाले इसका जीता जागता उदाहरण हैं। पहाड़ के उत्पादों को बढावा देने के लिए खेती में उतरना अनिवार्य हैं। वह कहते हैं कि उनके स्टॉल में आने वाले उत्तराखंड के युवाओं को पहाड़ के किस्से भी सुनाते हैं।
जसपाल कहते हैं कि उनका मकसद अपने स्टॉल में पहाड़ के व्यंजन तैयार करना है। वह कोशिश करना चाहते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद पूंजी खत्म हो गई है। दूसरी लहर में उन्हें परिवार को लेकर गांव जाना पड़ा। वह कहते हैं कि कुछ सालों में वह वापस गांव जाएंगे और युवाओं को पहाड़ी व्यंजन तैयार करना सीखाएंगे। हल्द्वानी लाइव की ओर से जसपाल को सलाम जो दूसरे राज्य में रहकर पहाड़ के व्यंजनों को तैयार कर रहे हैं। फास्टफूड के रूप में मडुवे से बने पकवान लोगों को परोस रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके स्टॉल तक पहुंचने के लिए GTB नगर मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है।