देहरादून: प्रदेश में विधानसभा चुनाव को अब ज्यादा समय नहीं बचा है। ऐसे में भाजपा का ऊपरी नेतृत्व प्रदेश की राजनीति को लेकर एकदम सचेत हो गया है। चुनाव और राजनीति के माहौल में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक पत्र लिखकर सियासी गर्मी बढ़ा दी है। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर चुनाव ना लड़ने की इच्छा जताई है।
बीते दिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र भेजा। जिसमें उन्होंने आगामी विधानसभा चुनावों में चुनाव ना लड़ने की इच्छा जताई। इस पत्र में छिपे संदेश को कई तरह से देखा जा रहा है। बता दें कि त्रिवेंद्र ने पत्र में संगठन में अपनी भूमिका निभाने की बात साफ तौर पर कही है। उनका कहना है कि वह सीएम धामी के नेतृत्व में प्रदेश में सरकार लाना चाहते हैं।
आपको याद होगा कि जब जुलाई में खटीमा के विधायक पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था तो भाजपा ने साफ किया था कि अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसी कड़ी में अब पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी एक संदेश दिया है। उन्होंने जेपी नड्डा को लिखे पत्र में कहा है कि वह धामी की राह में नहीं आना चाहते।
पूर्व मुख्यमंत्री पत्र से ये कहना चाहते हैं कि वह धामी की राह निष्कंटक करना चाहते हैं। बता दें कि त्रिवेंद्र को 4 साल का कार्यकाल पूरा करने से ठीक 9 दिन पहले जिस तरह से हटाया गया था उससे भी वे काफी दुखी हुए थे। वह बात अलग है कि उन्होंने पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए कहीं भी किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पत्र में लिखा है कि वह विभिन्न राज्यों में चुनावों के दौरान कई बार जिम्मेदारी निभा चुके हैं। अब वे पार्टी संगठन में अपनी भूमिका चाहते हैं। यानी वह चुनाव लड़ने की बजाय चुनाव लड़ाने वाला बनना चाहते हैं। गौरतलब है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव ना लड़ने के ऐलान से डोईवाला सीट पर भी भाजपा की दुविधा खत्म हो जाएगी।
मौजूदा वक्त तक त्रिवेंद्र सिंह रावत डोईवाला सीट से प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन अन्य दावेदारों की भी यहां लंबी सूची है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के पत्र से यह साफ झलकता है कि वह सरकार बनने की स्थिति में युवा नेतृत्व के लिए किसी तरह की चुनौती पेश ना आए, इसी को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
बता दें कि मौजूदा विधायक का चुनाव लड़ने से मना कर देना भारतीय जनता पार्टी को कहीं ना कहीं बैकफुट पर धकेलता है तो वहीं सरकार बनने के बाद की राजनीतिक परिस्थितियों के दृष्टिकोण से यह भाजपा के लिए कहीं ना कहीं फायदेमंद भी साबित हो सकता है। खैर यह तो वक्त ही बताएगा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह दांव भाजपा के लिए झटका साबित होता है या फायदा।