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मयंक त्रिपाठी की कहानी, DSP और IRS बनने के बाद बने IAS 


Success Story: Ias Mayank Triphati: कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो दिल को छू जाती हैं और हमें यह एहसास कराती हैं कि अगर इरादे पक्के हों, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं। उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के रहने वाले मयंक त्रिपाठी की कहानी भी कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक है। उन्होंने एक नहीं, बल्कि तीन बार अपनी मेहनत से बड़ा मुकाम हासिल किया – पहले डीएसपी बने, फिर आईआरएस अधिकारी और आखिरकार आईएएस बनने का सपना भी पूरा किया।

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कहां से हुई पढ़ाई?

मयंक की शुरुआती शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही हुई। उन्होंने कन्नौज के जागरण पब्लिक स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर दिल्ली का रुख किया। वहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री ली। यहीं से उन्होंने अपने बड़े लक्ष्य की ओर पहला कदम बढ़ाया – सिविल सेवा की तैयारी।

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साधारण परिवार से असाधारण सफलता तक

मयंक का परिवार एक मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से है। उनके पिता प्रभात कुमार त्रिपाठी कन्नौज के डीएम ऑफिस में एकाउंटेंट के पद पर कार्यरत हैं, जबकि उनकी मां अर्चना त्रिपाठी एक गृहिणी हैं। परिवार की सीमित आर्थिक स्थिति के बावजूद मयंक ने कभी भी अपने सपनों के आगे परिस्थितियों को आड़े नहीं आने दिया।

सफर की शुरुआत: पहले ही प्रयास में बने डीएसपी

सिविल सेवा की तैयारी करते हुए मयंक ने 2022 में यूपी पीसीएस की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में डीएसपी बन गए। लेकिन उनका लक्ष्य यहीं रुकने वाला नहीं था।

दूसरे पड़ाव पर मिली आईआरएस की पोस्ट

डीएसपी बनने के बाद भी मयंक ने यूपीएससी की तैयारी जारी रखी और 2023 में उन्होंने ऑल इंडिया 373वीं रैंक हासिल कर इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) में चयन पाया।

आखिरकार पूरी हुई आईएएस की ख्वाहिश

अपने असली सपने, आईएएस बनने को लेकर मयंक ने मेहनत और बढ़ा दी। 2024 में एक बार फिर यूपीएससी परीक्षा दी और इस बार उन्होंने पूरे देश में 10वीं रैंक हासिल कर आईएएस अधिकारी बनने का गौरव प्राप्त किया। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, निरंतरता और लगन का परिणाम है।

सीख जो हर युवा के लिए जरूरी

मयंक त्रिपाठी की कहानी सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं, बल्कि एक सबक है – कि अगर मन में कुछ कर दिखाने की चाह हो और मेहनत में कोई कसर न छोड़ी जाए, तो हर सपना साकार हो सकता है। उनकी यात्रा हर उस छात्र के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों से घबराकर अपने लक्ष्य से भटक जाता है।

एक लाइन में कहें तो – मयंक त्रिपाठी ने साबित कर दिया कि ‘जिद होनी चाहिए, जीत अपने आप मिल जाती है।’

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