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पंतनगर यूनिवर्सिटी का प्रयोग हुआ सफल, पिरुल से बनाया ग्रीस और रेजिन


Pirul Uses: GB Pant Successful Experiment: Uttarakhand Successful Researches:

उत्तराखण्ड के जंगलों में लगने वाली आग के मुख्य कारणों में से एक कारण पिरुल है। एक तरफ पिरुल के कारण जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं पिछले कुछ समय में तेजी से बढ़ी हैं। तो पिरुल की पत्तियों की खरीद के लिए राज्य सरकार ने पिरुल खरीद के दामों में भी बढ़ोतरी की है। राज्य सरकार ने सभी स्थानीय निवासियों से पिरुल एकत्रित कर पिरुल को आय का माध्यम बनाने की अपील की थी। इस बीच जी.बी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और शोधार्थी तरन्नुम ने पिरुल से ग्रीस और रेजिन बनाया है। उनका कहना है कि इससे स्थानीय जनता को रोजगार भी मिलेगा और पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी। (GB Pant Successful Experiment)

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पिरुल से बनेगा बायो-ग्रीस और बाया-रेजिन

शोधार्थी तरन्नुम ने वरिष्ठ वैज्ञानिकों के निर्देशन में पिरूल से बायो-ग्रीस और बायो-रेजिन बनाने का प्रयोग सफलतापूर्क पूरा कर लिया है। पंतनगर विवि स्थित विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के जैव रसायन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. टीके भट्टाचार्य और डॉ. एके वर्मा के निर्देशन में तरन्नुम जहां ने यह शोध किया है। बता दें कि उत्तराखंड में हर साल 3.4 लाख हेक्टेयर भूमि में लगभग 2.06 मिलियन टन पिरूल का उत्पादन होता है। अब इन चीड़ के पत्तों से बायो-ग्रीस और बायो-रेजिन बनाया जा सकेगा। बायो ग्रीस मशीनों में बॉल-बियरिंग में घर्षण कम करेगा वहीं बायो-रेजिन प्लाईवुड चिपकाने के काम आएगा। (Pirul Uses)

राज्यपाल ने किया सम्मानित

पंतनगर विवि ने पेटेंट फाइल करने के साथ ही इन दोनों तकनीकों को गुजरात की कंपनी ग्रीन मॉलीक्यूल्स को (नॉन एक्स्क्लूसिव) बेच दिया है। निदेशक शोध डॉ. एएस नैन ने जानकारी देते हुए बताया कि इन दोनों तकनीकों का विकास आईसीएआर-एआईसीआरपी -ईएएआई परियोजना के अंतर्गत किया गया है। इस जीवन बदलने वाले शोध के लिए शोधार्थी तरन्नुम जहां को उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह ने यंग वूमन साइंटिस्ट एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित किया है। बताया जा रहा है कि इस तकनीक से पर्यावरण से प्रदूषण भी कम करने में सहायता मिलेगी। (Governer Awarded Researcher)

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