नई दिल्लीः दिग्गज साहित्यकार, अभिनेता, रंगकर्मी और एक्टिविस्ट गिरीश कर्नाड ने सोमवार को बेंगलुरु में आखिरी सांस ली। गिरीश कर्नाड के निधन के साथ साहित्य और सिनेमा के एक युग का अंत भी हो गया। गिरीश कर्नाड एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं, जो सिनेमा और साहित्य दोनों क्षेत्रों में शीर्ष पर रहे और हर तरह की भूमिकाओं में काम किया।
गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई 1938 को माथेरन, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम गिरीश रघुनाथ कर्नाड था। गिरीश ने 1958 में कर्नाटक आर्ट्स कॉलेज से कर्नाड ने अपना ग्रेजुएशन किया। 1960-63 में उन्होंने इंग्लैंड जाकर आगे की पढ़ाई पूरी की। गिरीश ऑक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट भी बने। कर्नाड ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस चेन्नई में सात साल तक (1963 से 1970) तक काम किया। लेकिन इस काम में कर्नाड का मन नहीं लगा। जिसके बाद कर्नाड ने चेन्नई में स्थानीय थियेटर ग्रुप “द मद्रास थियेटर ग्रुप” के साथ भी काम किया।
कर्नाड ने अपना पहला नाटक ययाति 1961 में लिखा था। कर्नाड ने जब ये नाटक लिखा उस वक्त वे ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई कर रहे थे। कर्नाड ने महज 26 साल की उम्र में साल 1964 में दूसरा नाटक “तुगलक” लिखा, इसमें मुहम्मद बिन तुगलक के जीवन को बारीकी से बताया गया था। कन्नड़ साहित्य में गिरीश कर्नाड नका बड़ा योगदान रहा। उनके मशहूर नाटकों में 1961 में ‘यताति’, 1972 में हयवदना, 1988 में नागामनडाला, 1964 में तुगलक, अग्निमतु माले’, ‘नगा मंडला’ और ‘अग्नि और बरखा’ शामिल है।
गिरीश कर्नाड ने बतौर लेखक फिल्मों में कदम रखा। 1970 में बतौर स्क्रीनराइटर ‘सम्सकारा’ से डेब्यू किया, ये फिल्म यूआर अनंतमूर्ति के नॉवेल पर आधारित थी। कन्नड़ फिल्म के लिए कर्नाड को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। इस फिल्म में उन्होंने लीड रोल भी किया था।
1977 में आई हिंदी फिल्म स्वामी गिरीश कर्नाड की चर्चित फिल्म है। इसमें कर्नाड ने शबाना आजमी के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी। श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी निशांत गिरीश कर्नाड की एक और चर्चित फिल्म है। इसमें भी शबाना आजमी ने कर्नाड की पत्नी का रोल निभाया था। शायम बेनेगल की एक और फिल्म मंथन में गिरीश कर्नाड ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला था। नागेश कुकुनूर की इकबाल और डोर गिरीश कर्नाड की दो और चर्चित फ़िल्में हैं।
गिरीश कर्नाड को 4 फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले थे। उन्होंने Vamsha Vriksha (1971) से बतौर डायरेक्टर डेब्यू किया। इस फिल्म के लिए गिरीश को नेशनल अवॉर्ड मिला। उनकी हिंदी फिल्मों में आशा, उत्सव, पुकार, टाइगर और टाइगर जिंदा है जैसी फिल्में भी की हैं। साल 1976 में आई फिल्म मंथन में गिरीश कर्नाड ने डॉ. राव का किरदार निभाया था। ये फिल्म श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियर के जीवन से प्रेरित थी।
फिल्मों को करने के साथ गिरीश कर्नाड ने दूरदर्शन के शो मालगुड़ी डेज में भी काम किया। 1990 में आए इस शो में उन्होंने स्वामी के पिता मास्टर मंजुनाथ की भूमिका निभाई। कर्नाड ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर बनी ऑडियो बुक विंग्स ऑफ फायर को अपनी आवाज दी थी।
गिरीश कर्नाड तमाम राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। बता दें कि कर्नाड ने सीनियर जर्नलिस्ट गौरी लंकेश की मर्डर पर बेबाक अंदाज में आवाज उठाई थी। गौरी लंकेश के मर्डर के एक साल बाद हुई डेथ एनिवर्सिरी में वो #MeTooUrbanNaxal प्ले कार्ड गले में पहनकर सभा में पहुंचे थे। उनके नाक में ऑक्सीजन की पाइप लगी थी।
गिरीश कर्नाड को 1972 में
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान भी दिया गया है। सिनेमा और साहित्य में योगदान के लिए कर्नाड को भारत सरकार ने 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण सम्मान दिया गया।
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गिरीश कर्नाड के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘गिरीश कर्नाड को सभी माध्यमों में उनके अभिनय के लिए याद किया जाएगा। उनके काम आने वाले कई सालों तक लोकप्रिय होते रहेंगे। उनके निधन से दुखी हूं। उनकी आत्मा को शांति मिले’।