हल्द्वानीः गर्मियों में सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल जाते छोटे बच्चों को होती दिख रही है। बच्चे जितना गर्मी से परेशान नहीं होते जितना अपने पीछे लगे बोझ से हो जाते है। बस्ते को अब एक बोझ के रूप में देखा जाता है क्योंकि छोटे-छोटे बच्चों पर अब स्कूल और अभिभावक पढ़ाई का बोझ बढ़ाते दिख रहे हैं। स्कूल में जहां बच्चों पर सबसे आगे रहने का प्रेशर बनाया जाता है। तो घर में बच्चों को नई-नई एक्टिविटी के लिए बाहर भेजा जा रहा है। यहीं कारण है कि बच्चों को अब खेलकूद भी एक बोझ सा लगने गला है। बच्चों के लिए सुबह के बस्ते से लेकर बिस्तर तक का सफर काफी थकान पूर्वक होता है।
मनोवैज्ञानिक डॉ.नेहा शर्मा ने बताया कि बच्चों का विकास छोटी उम्र में सबसे ज्यादा होता है पर आज-कल बच्चों को बस्ते के बोझ ने इतना झुका दिया है। बच्चों का शारिरिक और मानसिक विकास थम सा गया है। डॉ. नेहा ने बताया कि उनके पास हर सप्तह 8 से 10 बच्चे यही परेशानी के कारण आते है और अभिभावक बच्चों के चिड़चिड़ेपन और भावनात्मक रूप से कमजोरी की शिकायत लेकर आ रहे है।
मनोवैज्ञानिक डॉ.नेहा शर्मा बताती हैकि छोटी उम्र में किसी भी तरह का दबाव या बोझ बच्चों के लिए घातक होती जा रही है। शायद इसी को ध्यान में रखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने छोटे बच्चों को होम वर्क के दबाव से मुक्त रखने का फैसला लिया है। इसी को देखते हुए हालिया वर्षों में पाठ्यक्रम को लेकर तमाम सकारात्मक फैसले लिए है। किसी तरह की साइट बुक लगाए बिना एनसीईआरटी की पुस्तकों से पढ़ाना, क्लास एक से दसवीं तक के लिए बस्ते का बोझ तय करना, कलात्मक विषयों की शुरूआत, प्रैक्टिकल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना आदि इसमें प्रमुख है।
ध्यान मे रखे ये बाते
- बैग लटकाने के बाद बच्चो का पॉस्चर चेक करें।
- बच्चों के बैग में वही चीजें रखे जो जरूरी हैं।
- बच्चों को हर दिन एक्ससाइज व योगा करने की आदत डालें।
- स्कूल बैग में शोल्डर स्ट्रैप्स पैड डले हो। इससे गर्दन व कधों पर कम दबाव , पड़ेगा।
- पढाई को आराम-पसंद बनाए ।