नई दिल्ली: देश भर में लोकसभा चुनाव की हलचल है। पहले दो राउंड पूरे हो गए है और तीसरा 23 अप्रैल को है। लोकसभा चुनाव अपने आगे बढ़ने के साथ विकास के मुद्दे खो रहा है और केवल राजनीतिक दलों के भाषणों का तमाशा बना हुआ है। विकास की बात कोई नहीं कर रहा है, बस एक दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हैं। रही कसर लोगों को धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगने की कोशिश की जा रही है। क्या देश की भलाई विकास में हैं या केवल सत्ता में ?
बात कांग्रेस और भाजपा की करें तो दोनों ने अपने घोषणा पत्र में जो बातें कही थी उनमें 2-3 पर ही बात हो रही है, बाकि मुद्दे घोषणा पत्र की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा अपने जवाबदेही को भूलते हुए पुरानी बातों से जनता से मत मांगने का प्रयास जारी है। केंद्र सरकार से जनता पिछले 4 सालों से रोजगार, किसान और महिला सुरक्षा पर सवाल कर रही है लेकिन इन जवाबों को छोड़कर उन बातों पर जोर दिया जा रहा है जो उन्हें एक बार फिर सत्ता दिला दें। वहीं विपक्ष अपने आइडिया से ज्यादा राफेल का गुणगान कर रहा है। उस मुद्दे का जिसकी आड़ में वो पीएम को चोर बोल जा रहा है और फिलहाल अभी तक उसके पास कोई पुख्ता सबूत भी नहीं हैं।
इसके अलावा भाजपा को सत्ता को दूर करने के लिए कुछ लोग धर्म के नाम पर वोट मांग रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू और मायावती मुस्लिम वोटरों से एकजुट होने की बात कह चुके हैं। मुस्लिम वोटर आपकी क्यों सुने, उसने भी पिछले 4 साल देखे हैं वो अपने हिसाब से वोट करेगा। अपने विजन को दिखाने के बजाए उनसे सरकार को वोट ना करने की बात कहा जाना कौन से देश का विकास करेगा।
वहीं भाजपा सरकार सेना द्वारा की गई कार्रवाई को गुणगान कर अपने नंबर बढ़ा रही है। पीएम मोदी कई रैलियों में एयर स्ट्राइक और कमांडर अभिनन्दन को वापस लाने के विषय पर लोगों के सामने इशारों इशारों में मत मांगने का प्रयास कर रहे हैं। बेहतर होता कि राजनीतिक दल केवल विकास और देश को एकजुट करने के संदेश के साथ अपना प्रचार आगे बढ़ाते। धर्म और जाति की राजनीति देश के लोकतंत्र को मजबूत नहीं बल्कि कमजोर कर रही है।