हल्द्वानीः वीर चक्र विजेता मेजर जनरल सुरेंद्र शाह का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। शूरवीर योद्धा सुरेंद्र शाह ने 1965 में भारत-पाक युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। इस युद्ध में उनको बहादुरी के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति से वीर चक्र से नवाजा गया था। सोमवार को सीने में दर्द उठने पर परिवार वाले उन्हें सुबह अस्पताल ले गए थे। जहां शाम के समय उन्होंने अंतिम सांस ली।
बता दें नैनीताल के मूल निवासी मेजर जनरल सुरेंद्र शाह भोटिया पड़ाव वीयर शिवा स्कूल के पीछे परिवार के साथ रहते थे। सोमवार की सुबह सीने में दर्द की शिकायत होने पर परिवार के लोग उन्हें जगदंबानगर स्थित अस्पताल गए। यहां इलाज के दौरान शाम सवा चार बजे उन्होने अंतिम सांस ली। सुरेंद्र शाह का जन्म तीन जुलाई 1943 को हुआ। 11 दिसंबर 1962 को भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन में कमीशन मिला था। साल 1965 के युद्ध में एक सामान्य इन्फेंट्री बटालियन ने पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के पोस्ट पर आक्रमण किया था और इस दल का नेतृत्व तब तत्कालीन कैप्टेन सुरेंद्र शाह ने किया। इस दल ने तिथवाल सेक्टर में धावा बोलकर पाकिस्तान की विशेष बटालियन के एक अफसर और 58 जवानों को मार गिराया था।
सुरेंद्र शाह को एक नवंबर 1995 को कर्नल ऑफ़ रेजिमेंट के पद मिला और वह कुमाऊँ रेजिमेंट, नागा रेजिमेंट और कुमाऊँ स्काउट्स के कर्नल ऑफ़ रेजिमेंट रहे। 31 जुलाई 2001 को मेजर जनरल सुरेंद्र शाह इसी पद से सेवा निवृत हुए।
सेवानिवृत्ति के बाद उन्होने हल्द्वानी में वीयर शिवा स्कूल के पास घर बनाया और वहीं रहने लगें। उन्होंने पूर्व सैनिकों के संरक्षक की अहम् भूमिका निभाई। जिला सैनिक लीग के अध्यक्ष मेजर बीएस रौतेला का कहना है कि मेजर जनरल सुरेंद्र शाह मेजर जनरल इंद्राजीत सिंह बोरा, विशिष्ट सेवा मेडल और ब्रिगेडियर पीएस बोरा के बहनोई थे। वहीं मेजर बीएस रौतेला का कहना है कि मेजर जनरल सुरेंद्र शाह के इकलौते पुत्र सिद्धार्थ शाह भी आर्मी में नौर्थ इस्ट में मेजर के पद पर तैनात हैं। उनके बुधवार तक पहुंचने की संभावना है। मेजर सिद्धार्थ शाह के आने के बाद 27 मई तो रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर मेजर जनरल सुरेंद्र शाह के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया जाएगा।