हल्द्वानी: इस वक्त पूरे देश की नजर उत्तराखंड पर है। विधानसभा चुनाव के शुरू होने के बाद उत्तराखंड में जो टिकट बंटवारे को लेकर मंथन शुरू हुआ था वह अब दल बदलने के खेल में तब्दील हो गया है। टिकट न मिलने से नाराज दावेदार दल बदल रहे हैं जो साफ दिखाता है कि राजनीति अब जनसेवा और सामाजिक कार्यों से बढ़कर आगे निकल चुकी है जिसका मकसद से सत्ता हासिल करना है यानी अगर आप नेता है तो आपके पास पावर होना जरूरी है। एक दल के साथ उसकी विचार के साथ जुड़ने के बाद केवल टिकट के लिए दूसरे दल में जाना भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले हरक सिंह रावत सुर्खियों पर चल रहे हैं पहले कैबिनेट मीटिंग से नाराज होकर जाना और मंत्री पद छोड़ना साफ बता रहा था कि वह भाजपा के साथ जुड़कर कार्य नहीं करने वाले है। हालांकि आचार संहिता लगने तक भाजपा ने उन्हें मना कर रखा और अपने साथ जोड़ कर भी रखा। और यह इसलिए कि जनता के समक्ष चुनाव से पहले एक गलत संदेश ना जाए कि भाजपा में अंदरूनी कलह चल रही है। बीजेपी ने टिकट बंटवारे से हरक सिंह रावत को मंत्री पद और सदस्यता से बर्खास्त किया है। मुख्यमंत्री धामी के अनुसार हरक सिंह रावत अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे थे और दबाव बना रहे थे भाजपा परिवारवाद को लेकर किसी भी तरीके का दबाव नहीं झेलेगी और इसीलिए उन्हें भाजपा से बाहर करने का फैसला किया गया है
5 साल मंत्री पद में रहने के बाद हर सिंह रावत अचानक भाजपा पर विकास ना करने का आरोप लगा रहे हैं। माना जा रहा है कि मंगलवार दोपहर को वह कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। उनके साथ उनकी बहू अनुकृति गोसाई भी कांग्रेस की सदस्यता लेंगे और उन्हें कांग्रेस लैंसडाउन से टिकट दे सकती है। हरक सिंह रावत को कांग्रेस में शामिल करना इतना आसान नहीं रहा है क्योंकि वह हरीश रावत और राहुल गांधी को लेकर कई बयान भाजपा में कैबिनेट मंत्री रहने के दौरान दे चुके थे। हरीश रावत ने भी साफ किया था कि अगर हरक सिंह रावत अपनी गलती को मानेंगे तो उन्हें कांग्रेस में एंट्री मिलेगी।
जैसा कि हमने आपको आर्टिकल में कहा कि राजनीति अब सत्ता हासिल करने की है,ऐसे में हरक सिंह रावत को नहीं लेने की गलती कांग्रेस नही करती। ये जोड़ घटाने की राजनीति से बीजेपी को नुकसान हुआ है। यशपाल आर्य, संजीव आर्य के बाद अगर हरक सिंह रावत में शामिल होते है तो उन्हें तीन विधयकों का नुकसान पहले हो गया है जो शायद विधानसभा चुनाव में टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है। हरक सिंह रावत पांचवी बार को राजनीतिक दल बदलने जा रहे हैं। उन्होंने अपना करियर भाजपा से शुरू किया उसके बाद वह बीएसपी में गए फिर उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा और साल 2016 में दोबारा भाजपा में शामिल हुए यहां 5 साल मंत्री रहने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में जा रहे हैं।