हरिद्वार: कुंभ मेले के दौरान सामने आया कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़ा नए रूप लेने में लगा हुआ है। गुरुवार को हाईकोर्ट ने आरोपित मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज के सर्विस पार्टनर शरद पंत व मलिका पंत की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान प्रदेश सरकार को झटका दिया है। सरकार के प्रार्थना पत्र को कोर्ट ने खारिज किया है।
दरअसल गुरुवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धानिक की एकलपीठ में शरद पंत व मल्लिका पंत ने याचिका दायर कर कहा था कि वह मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेज के सर्विस प्रोवाइडर है। तथा परीक्षण और डाटा प्रविष्टि के दौरान कंपनी का कोई भी कर्मी मौजूद नहीं था।
याचिकाकर्ताओं की मानें तो ये काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की निगरानी में किया गया था। इन अधिकारियों की मौजूदगी में ही हुआ, जो भी हुआ। ऐसे में अगर गलत काम हो रहा था तो, मेले की अवधि के दौरान अधिकारियों ने आवाज क्यों नहीं उठाई।
सीएमओ हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि कुंभ मेले के दौरान अपने को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी तरीके से टेस्टिंग की गई। इसके साथ ही एक व्यक्ति ने सीएमओ हरिद्वार को पत्र लिख बताया था कि टेस्टिंग लैबों द्वारा उनकी आइडी का इस्तेमाल बिना किसी सैंपल दिए या पंजीकरण किए बिना किया गया।
बता दें कि इसी मामले में कोर्ट ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के आधार पर इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। जिसके तहत सात साल से कम सजा वाले केसों में गिरफ्तारी नहीं होगी। साथ ही जांच में सहयोग करने के दिशा निर्देश दिए गए थे।
इन्ही दिशा निर्देशों के आधार पर कोर्ट ने इनकी गिरफ्तारी पर रोक व जांच में सहयोग करने को कहा था। बहरहाल सरकार की तरफ से एक प्रार्थना पत्र देकर कोर्ट से अनुरोध किया गया कि पूर्व के आदेश को रिकॉल किया जाए या वापस लिया जाए।
सरकार के अनुसार जांच में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गंभीर साक्ष्य मिले है। पुलिस ने इन गंभीर साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 467 बढ़ा दी है। जिसमें सजा सात साल से अधिक है। इसलिए अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य का निर्णय इन पर लागू नही होता है। मगर कोर्ट ने सरकार के प्रार्थना पत्र को निरस्त किया है। साथ ही जांच अधिकारी को अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 में पारित दिशानिर्देशों का पालन करने के निर्देश दिए हैं।