
नई दिल्ली: भारत में मेडिकल और इंजीनियरिंग को अक्सर सबसे सुरक्षित करियर विकल्प माना जाता है, लेकिन कभी-कभी असली सफलता उसी राह पर मिलती है जो सबसे कठिन और अनिश्चित हो। कुछ ऐसा ही किया अंशुल गांधी ने….जिन्होंने एक डेंटिस्ट बनने के बाद मेडिकल फील्ड छोड़कर टेक्नोलॉजी की दुनिया में छलांग लगाई…और आज वो दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी Apple में सीनियर मशीन लर्निंग इंजीनियर हैं।
डेंटिस्ट से डेटा साइंटिस्ट बनने का सफर
साल 2013 में अंशुल गांधी ने डेंटल कॉलेज से BDS की डिग्री हासिल की और एक डेंटिस्ट के रूप में करियर शुरू करने के लिए तैयार थे। लेकिन कुछ ही समय में उन्हें एहसास हुआ कि वह इस पेशे में खुद को पूरी तरह नहीं देख पा रहे हैं। रूट कैनाल और डेन्चर डिज़ाइन करते वक्त उनका मन किसी और दिशा में जाने की ओर इशारा कर रहा था…और वह दिशा थी कोडिंग और टेक्नोलॉजी।
कोडिंग के जुनून ने दिखाई नई राह
बचपन के कोडिंग के शौक को फिर से जिंदा करते हुए अंशुल ने C++ और Java जैसी भाषाएं सीखना शुरू किया। भारत में ही उन्होंने बतौर डेटा एनालिस्ट काम करना शुरू किया…जहाँ से उनका नाता AI और डेटा साइंस से जुड़ गया।
अमेरिका में मास्टर्स और AI में नई उड़ान
2016 में उन्होंने अमेरिका के ह्यूस्टन जाकर बायोमेडिकल इंफॉर्मेटिक्स में मास्टर्स किया एक ऐसा फील्ड जो हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी को जोड़ता है। यह डिग्री उनके लिए वरदान साबित हुई। 2018 में डिग्री पूरी कर उन्होंने हेल्थ डेटा पर काम करने वाले एक डेटा साइंटिस्ट के रूप में करियर की नई शुरुआत की।
Dell में मशीन लर्निंग इंजीनियर, फिर Apple तक का सफर
2021 में अंशुल को Dell में मशीन लर्निंग इंजीनियर की नौकरी मिली…जहाँ उन्होंने साइबर सिक्योरिटी के लिए AI/ML आधारित पेटेंट फाइल किया। लेकिन उनका सपना इससे भी बड़ा था Google, Meta या Apple जैसी कंपनियों में काम करना।
2024 में नौकरी बदलने की चाहत में उन्होंने दोबारा तैयारी शुरू की। लेकिन अब माहौल बदल चुका था Generative AI का दौर था और प्रतिस्पर्धा कहीं अधिक कठिन। अंशुल ने अपनी रणनीति बदली….LinkedIn नेटवर्क को 200 से बढ़ाकर 500+ किया। खुद को एक AI Thought Leader के रूप में स्थापित किया। LeetCode और मॉक इंटरव्यू से इंटरव्यू स्किल्स को धार दी।
सपना हुआ सच Apple में सीनियर इंजीनियर
जनवरी 2025 में अंशुल ने Apple के इंटरव्यू क्रैक किए और उन्हें सीनियर मशीन लर्निंग इंजीनियर की नौकरी मिल गई। यह उनके जुनून, निरंतर सीखने और सही नेटवर्किंग की जीत थी।
अंशुल गांधी की सफलता यह साबित करती है कि अगर आप अपने जुनून को पहचानकर उस दिशा में मेहनत करें…तो किसी भी क्षेत्र से आने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। उन्होंने दिखाया कि कैसे चिकित्सा शिक्षा से शुरुआत करके भी कोई व्यक्ति AI और टेक्नोलॉजी में अपनी अलग पहचान बना सकता है।






