हल्द्वानी : कोरोना वायरस ने जीवन में भले ही निराशा के कण रोपित कर दिये हों पर हम मनुष्य जीवन की इस दुविधा में भी आशा की नयी किरण लाने का दम खम रखते हैं। लॉकडाउन ने जीवन के तरीके बदल दिए हैं। ऐसे में अब जरूरत है नए माध्यमों में अपने आप को ढालने की और उसके बाद सब पहले जैसा ही होगा… ये हम नहीं हर वो शख्स बोल रहा है जो अपने आप को रोकना नहीं चाहता । इसी ज़ज्बे को कायम रखते हुए रंगीत आर्ट सेंटर ने ऑनलाइन उत्तराखंड आर्ट फेस्ट का आयोजन किया है । कला व संगीत की रौनक बिखेरती यह कोशिश बेहद उम्दा है ।
उत्तराखंड के युवाओं को आगे बढ़ाने की सोच के साथ बरेली रोड गौजाजाली स्थित रंगीत आर्ट सेंटर ने युवाओं के साथ अनुभव साझा करने के लिए इंटरनेशनल फेस्टिवल के आयोजन किया है । फेस्ट का आयोजन बीते बुद्धवार एक जुलाई से शुरू हुआ। दुनिया के विख्यात अर्टिस्ट इस फेस्टिवल का हिस्सा बन रहे हैं। ये पूरी तरीके से डिजिटल है। अर्टिस्ट एक वीडियो बनाकर भेज रहे हैं और वह वीडियो रंगीत आर्ट सेंटर के अधिकारिक फेसबुक पेज पर अपलोड किया जा रहा है ।
बुधवार 1 जुलाई को उत्तराखंड आर्ट फेस्ट का पहला दिन था जिसमें तीन विख्यात कलाकारों ने अपना अनुभव शेयर किया। पहले सेशन में खेरागढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वी. नागदास ने प्रिंट मेकिंग के बारे में जानकारी दी । दूसरे सेशन में अपने हुनर से मशहूर तबला वादक पं.मुकुन्द नारायण भाले ने तबला वादन का मूल ज्ञान दिया। आखिरी सेशन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विश्वविख्यात प्रो.प्रणाम सिंह ने चारकोल डेमो पेटिंग के साथ चित्रकारी की बारीकियां और अपने जीवन के अनुभव साझा किए ।
पंडित मुकुन्द नारायन भाले ने उत्तराखंड आर्ट फेस्ट के अपने पहले सेशन में
रंगीत आर्ट सेंटर के संचालक मनोज पांडे और कुसुम पांडे, जितेंद्र पांडे और उनकी संपूर्ण टीम को ढेर सारी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ये संस्था देश में ही नहीं विदेश में भी शोहरत का परचम लहरायेगा । कला को प्रेरित करते उत्तराखंड ऑनलाइन शिक्षा की इस शानदार पहल को वे बेहद सकारात्मक मानते हैं । उन्होंने कहा कि जब गुरु शिष्य नहीं मिल पा रहें हैं तब उत्तराखंड आर्ट फेस्टिवल के माध्यम से ऑनलाइन इतने अच्छे स्तर पर सब इंतेजाम करना वाकई रंगीत के परिवार को बधाई के पात्र बनाता हैं। उन्होंने कहा कि संस्थापक कुसुम पांडे ,मनोज पांडे व जितेंद्र पांडे तीनों बहुत हुनरमंद हैं । तीनों खेरागढ़ विश्वविद्यालय जैसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से पासआउट हैं। खेरागढ़ विश्वविद्यालय की तारीफ में उन्होंने कहा कि संगीतवादकों के लिए यह मक्का मदिना के समान है और इसका नाम विश्व हेरिटेज में दर्ज होना चाहिए।
अपने हुनर को साझा करते हुए उन्होंने तबले के बारे में मूल जानकारी भी दी । उन्होंने बताया कि तबला एक अनोखा अवनद्ध वाद्य है जिसमें सबसे अधिक आवाज पैदा करने की क्षमता है। वे कहते हैं कि हमारा तबले का पिछले 50 सालों में जो विकास हुआ है वो अद्भूत है । इसकी सियाही हमारे देश की एकता का प्रतीक है। उन्होंने भरतनाट्यशास्त्र का भी जिक्र किया । अपने सेशन की समाप्ति पर उन्होंने बेहद सुन्दर ताल को तबले पर बजा कर दिखाया और शुभकामनाओं के साथ विदाई ली ।
प्रो वी नागदास
प्रो वी नागदास कहा कि रंगीत बहुत उम्दा नाम है और विषय को भली भॉति परिभाषित करता है। यह बहुत उत्कृष्ट मल्टी कल्चरल सेंटर है ।उन्होंने कहा कि प्रिंट मेकिंग के बारे में लोंगों के मन में बहुत संशय है। प्रिंट मेकिंग दृश्यकला का एक भाग है । प्रिंटमेकिंग कागज़ पर प्रिंट करके आर्ट-वर्क बनाने की प्रक्रिया है। प्रिंटमेकिंग आम तौर पर केवल पेंटिंग के फोटोग्राफिक प्रजनन के बजाए प्रिंट बनाने की प्रक्रिया को कवर करती है, जिसमें मौलिकता का तत्व होता है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के विद्यार्थियों के लिए रंगीत आर्ट सेंटर को एक बढ़ा वरदान बताते हैं । संस्थापक की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि रंगीत के इतने बड़े स्टूडियो की स्थापना करना यूं तो आर्थिक रूप से एक बहुत जोखिम भरा फैसला है परंतु इसकी उपयोगिता और गुणवत्ता इसे एक अच्छा निवेश साबित कर सकती है।शुभकामनाओं के साथ साथ उन्होंने उन्हे कई सुझाव भी दिये । उन्होंने अपने शिक्षण की कुछ पुरानी झलकियां शेयर की ।
प्रो.प्रणाम सिंह
उत्तराखंड आर्ट फेस्ट के लिए उन्होंने रंगीत आर्ट सेंटर की टीम को बधाई दी। प्रो.प्रणाम सिंह ने कहा कि आने वाले वक्त में रंगीत को ऐसे कईं उत्कृष्ट कार्यों के लिए शुभकामनाएं दी ।कला प्रेमी छात्रों को इस पहल के जरिए देश –विदेश के कलाकारों का सानिध्य प्राप्त होगा और कला के विभिन्न रूपों को जानने का मौका मिलेगा ।
अपने सेशन में प्रो.प्रणाम सिंह ने सबसे पहले अपने जीवन की कला यात्रा का अनुभव साझा किया । उन्होंने बताया कि बचपन से ही उन्हें कला में बेहद रूचि थी । वे अक्सर कामिक्स और मैगजीन से चित्र कॉपी किया करते थे । स्कूल से पासआउट होने के बाद उन्होंने मणिपुर से डिप्लोमा किया । 1977 -1982 के दौरान उन्होंने कोलकाता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट से ज्वाइन किया। उसी बीच उन्होंने अपने कलागुरू विकास भट्टाचार्य से पेंटिंग के गुण सीखें। शान्तिनिकेतन की कार्य प्रणाली उन्हें प्रकृति के करीब ले गयी । वहां उन्हें कई बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला । साल 1985 में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में लेक्चरर के तौर पर जुड़ गये ।
कला की ओर रूझान रखने वाले युवाओं को दिशा देते हुए उन्होंने कहा कि बदलाव के साथ चलना चाहिए । कला में निखार लाने के लिए अभ्यास करना बहुत अधिक जरूरी है । एक कलाकार प्रकृति के जितना अधिक करीब रहता है काम में उतनी बारीकी आती है ।और साथ ही इस क्षेत्र में संयम रखना भी जरूरी है। सेशन की महत्ता को और बढ़ाते हुए उन्होंने चारकोल डेमो दिया और क्रियात्मक रूप से समझाकर सेशन को सफल बनाया ।