हल्द्वानी : यूं तो जोशीमठ की स्थिति से हम सभी वाकिफ़ हैं, पर अब ये केवल एक प्राकृतिक त्रासदी ही नहीं बल्कि धार्मिक रूप से भी एक त्रासदी बन चुकी है। जोशीमठ शहर की वह पावन भूमि जिस जगह आदि गुरु शंकराचार्य ने बैठ कर तपस्या की और जिस जगह से जोशीमठ को एक ज्योतिर्मठ की उपाधि मिली वो जगह भी इस आपदा का शिकार हो चुकी है।
वर्षों से हिंदू सभ्यता, संस्कृति और सनातन धर्म की रक्षा का केंद्र रहे इस ज्योतिर्मठ पर भी अब संकट के बादल नज़र आने लगे है। ज्योतिर्मठ परिसर में यूँ तो लम्बे समय से हल्की दरारें नज़र आ रही थी, पर पिछले 15 दिनों में यह दरारें काफ़ी ज्यादा बढ़ गई है। मंदिर परिसर व आसपास के लोगों के अनुसार यह दरारें हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती जा रही है।
मठ के प्रमुख स्वामी विश्वप्रियानंद ने अनियंत्रित विकास को इस संकट का कारण बताया है। जोशीमठ का प्राचीन मंदिर, नृसिंह मंदिर जिसे भगवान बद्रीनारायण की शीतकालीन गद्दी भी माना जाता है, वह मंदिर भी इस ही परिसर के अंदर आता है। यही नहीं, जोशिमठ का प्रसिद्ध राजराजेश्वरी मंदिर, और शंकराचार्य की पावन गद्दी स्थल भी इस ही परिसर का हिस्सा है। परिसर में आई दरारों के कारण यह सभी जगह भी संकट के घेरे में आ गई हैं।
बता दिया जाए कि हाल ही में जोशीमठ में माँ भगवती मंदिर भूस्खलन की चपेट में आया था, जिसके बाद अब शंकराचार्य माधव आश्रम मंदिर के शिवलिंग में भी दरारें उभर आई हैं। इस के साथ ही लोगों द्वारा लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास परिसर के भवनों में भी बड़ी- बड़ी दरारें नज़र आने का दावा किया गया है।