हल्द्वानी: सेना में शामिल होकर देश की रक्षा करना, अपने प्राणों को देश के लिए त्याग देना कोई आसान बात नहीं। और आसान, शहीदों का परिवार होना भी नहीं है। वीर जवानों के साथ साथ उनके परिवारों का समर्पण और त्याग भी बहुत कुछ सिखाता है। शहादत की कहानियां आंसुओं के साथ साथ रोंगटे खड़े कर देती हैं। ऐसी ही एक कहानी (Story of a martyr) 38 साल बाद पूरी होने जा रही है। साल 1984 में सियाचिन में शहीद हुए हल्द्वानी निवासी चंद्रशेखर हर्बोला (Martyr Chandra Shekhar Harbola) का शव उनके आवास पर पहुंचने वाला है।
कहानी इस प्रकार है कि मूल रूप से हाथीखर द्वाराहाट जिला अल्मोड़ा निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट में लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला 1975 में सेना में भर्ती होने के बाद 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन (India Vs Pakistan in Siachin) के लिए हुई झड़प (ऑपरेशन मेघदूत) में शामिल थे। ऑपरेशन के तहत सियाचिन में पेट्रोलिंग पर निकले 20 सैनिक ग्लेशियर टूटने की वजह से लापता हो गए थे। खोजबीन के बाद 15 जवानों के पार्थिव शरीर मिल गए थे। परंतु चंद्रशेखर समेत अन्य पांच जवानों के शव नहीं मिले थे।
जब लंबे समय बाद उनका कोई पता नहीं चला तो उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था। उस समय उनकी पत्नी को 18 हजार रुपये ग्रेज्युटी और 60 हजार रुपये बीमा के रूप में मिले थे। ये बात दूसरी है कि परिवार के किसी सदस्य को नौकरी आदि सुविधाएं नहीं मिलीं थी। अब इतने सालों बाद चंद्रशेखर हर्बोला का शव (Dead body found after 38 long years) मिला है। जिसकी खबर पाकर फिर पुरानी यादें परिवार के ज़ेहन में ताजा हो गईं।
एसडीएम मनीष कुमार सिंह ने बताया कि प्रशासन सेना और उनके परिवार के लगातार संपर्क में है। शहीद चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर स्वतंत्रता दिवस की शाम या फिर मंगलवार को हल्द्वानी पहुंच जाएगा। जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बता दें कि वर्तमान में उनका परिवार सरस्वती विहार, नई आईटीआई रोड, डहरिया हल्द्वानी (Haldwani resident family) में रहता है। परिवार में उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांता देवी, दो बेटियां कविता, बबीता और उनके बच्चे यानी नाती-पोते हैं।