देहरादून: कोरोना वायरस के प्रकोप से बाहर निकलकर बीते महीने से उत्तराखंड के स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से खोलने का फैसला किया गया था। साल 2020 शैक्षिक सत्र पूरी तरह से ऑनलाइन कक्षाओं पर निर्भर रहा था। हालात पहले से काबू में आए थे स्कूल खोलने का फैसला सरकार ने लिया। इस फैसले का स्वागत अभिभावकों ने किया है। ये हम नहीं एक रिपोर्ट बोल रही है। वहीं इस रिपोर्ट में स्कूल जाने वाले बच्चों की लिस्ट में पहाड़ के बच्चे ज्यादा हैं। करीब 70 प्रतिशत छात्र स्कूल आने लगे हैं। स्कूल खुलने के पहले हफ्ते यह संख्या 30-40 प्रतिशत रही थी। शैक्षिक सत्र 2021-2022 के लिए स्कूलों ने सभी तैयारियां कर ली थी लेकिन होली के बाद कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने पूरे प्लान पर पानी फेर दिया। चालू शैक्षिक सत्र में भी कोरोना की दूसरी घातक लहर की वजह से जुलाई माह तक स्कूल बंद ही रहे।
स्कूल में कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच बच्चों को बुलाने के फैसले पर पहले अभिभावकों को पहले संशय था। इसे दूर करने के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का विकल्प दिया गया था। वहीं पहाड़ों में ऑनलाइन से ज्यादा ऑफलाइन विकल्प को पसंद किया गया। पर्वतीय जिलों में इंटरनेट की समस्या रही है। इन क्षेत्रों के छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई का खास फायदा नहीं मिल पाया है। स्कूल खुलने के बाद पहाड़ के बच्चों में शहर के बच्चों के मुकाबले ज्यादा उत्साह देखने को मिला है। पर्वतीय जिलों में स्कूल आने वालों की तादाद 80 फीसद से भी ज्यादा है।
पर्वतीय जिलों अल्मोड़ा में 80.2 फीसद, बागेश्वर में 82 फीसद, चमोली में 88.9 फीसद, पौड़ी में 82 फीसद, रुद्रप्रयाग में 80.2 फीसद और उत्तरकाशी में 81.3 फीसद छात्र स्कूल पहुंचे। मैदानी जिलों में कम उपस्थिति पर्वतीय जिलों में एकमात्र पिथौरागढ़ जिले में ही छात्रों की उपस्थिति 57.1 फीसद तक रही। टिहरी में 72.9 फीसद और चंपावत में 72 फीसद बच्चों ने स्कूलों का रुख किया। मैदानी जिलों की तरफ नजर डाले तो ऊधमसिंहनगर में 64.3 फीसद, हरिद्वार में 52.2 फीसद, देहरादून में 62.7 फीसद और नैनीताल में 73 फीसद बच्चे स्कूल पहुंचे। इस संख्या से शिक्षा विभाग चैन की सांस ले रहा है। क्योकि अगर अभिभावक बच्चे को स्कूल भेजने को लेकर हामी नहीं भरते तो ऑनलाइन कक्षा पर फोक्स करना पड़ता । ऐसे में सरकारी स्कूलों के लिए एक साथ दोनों व्यवस्था तैयार कर पाना आसान नहीं रहता।