
Pawan Kumar IAS Success Story: कभी तिरपाल से ढके छप्पर के नीचे बैठकर मिट्टी के दीयों की रोशनी में पढ़ाई करने वाला लड़का अब देश का अफसर बन चुका है। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के छोटे से गांव रघुनाथपुर से निकलकर पवन कुमार ने वो कर दिखाया…जो करोड़ों युवा सिर्फ सपनों में सोचते हैं।
पवन कुमार का जन्म एक बेहद साधारण किसान परिवार में हुआ। पिता मुकेश कुमार कभी खेतों में मेहनत करते थे…तो कभी मनरेगा के तहत मजदूरी। परिवार के पास आमदनी का कोई ठिकाना नहीं था। दो वक्त की रोटी भी कभी भरोसे की नहीं होती थी। लेकिन इस लड़के ने हालात से हार मानने के बजाय उन्हें चुनौती देने का फैसला किया।
पढ़ाई के लिए मां ने बेचे गहने, बहनों ने की मजदूरी
पवन के संघर्ष में उनका पूरा परिवार साथ खड़ा रहा। मां ने गहने बेचे, बहनों ने खेतों में मजदूरी की, पिता ने पुराना मोबाइल खरीदकर दिया…ताकि बेटा दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर सके। 3200 के सेकंड हैंड फोन में ऑनलाइन पढ़ाई कर पवन ने खुद को तैयार किया।
छप्पर टपकता था, फिर भी जलता रहा हौसले का दीया
बारिश के मौसम में जब छत टपकती थी तो पूरा परिवार रातभर जागकर किताबों और सामान को पानी से बचाता था। न बिजली थी, न रोशनी…लेकिन पवन ने कभी हार नहीं मानी। मिट्टी के दीये और आत्मविश्वास की लौ ही उसके सबसे बड़े हथियार बन गए।
तीन बार असफलता, लेकिन नहीं टूटा हौसला
यूपीएससी की राह आसान नहीं थी। दो बार परीक्षा में फेल हुए…और 2022 में महज 1 अंक से चयन चूक गया। लेकिन पवन रुके नहीं। उन्होंने हार को सबक बनाया और खुद को पहले से बेहतर तैयार किया।
239वीं रैंक, फिर गांव में बजा जीत का नगाड़ा
साल 2023 में आखिरकार मेहनत रंग लाई। 239वीं रैंक के साथ पवन कुमार का आईएएस बनने का सपना पूरा हुआ। जिस मिट्टी के घर में कभी तेल के दीये जलते थे…वहां अब जश्न की रौशनी थी। गांववालों ने फूलों से उसका स्वागत किया…और उसकी सफलता पूरे जिले के लिए प्रेरणा बन गई।
पवन की कहानी ये साबित करती है कि संसाधन नहीं इरादा मायने रखता है। गरीबी कोई बाधा नहीं होती…अगर साथ हो परिवार।






