हल्द्वानी: किसी भी प्रदेश की संस्कृति और वहाँ रहने वाले लोगों के बीच एक अटूट सम्बन्ध होता है। और उस संस्कृति का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है ।परन्तु दुख की बात यह है कि हमारे उत्तराखंड में भाषा के प्रचार के सन्दर्भ में सदा ही हमें मुँह की खानी पड़ती है। पर जहाँ एक ओर कुछ युवा अपनी लोकसंस्कृति को ताक पर रखकर पराई संस्कृति के प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं ,वहीं उत्तराखंड के बहुत से युवा ऐसे हैं जो नये जमाने के नये तरीकों से ,अपनी संस्कृति को सहेज लेते हैं।वे यह साबित करते हैं कि समय के साथ जमाना कितना ही बदले हमें लोक संस्कृति को भूलने के बजाए उसे नयी पीढ़ी के लिए सहेज कर रखना चाहिए।
अब क्योंकि हमारे पहाड़ में लोक गीतों के जरिए सम्पूर्ण लोक संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है तो गुमनाम हो रही भाषा को आत्मा से जोड़ने और इसका प्रभावी प्रचार करने का संगीत से बेहतर तरीका भला क्या हो सकता है ! आजकल बहुत से युवा संगीतकार ,सोशल मीडिया के जरिए अपनी प्रतिभा को स्वतंत्र मंच प्रदान कर रहे हैं। शोशल मीडीया जल्द से जल्द सूचना का प्रचार करने वाला एक आज श्रेष्ठ माध्यम बन गया है।
रैप म्यूजिक के दौर में पहाड़ी लोकगीतों में छुपी भावनाओं को आजकल के ही अंदाज में अपने पहले कुमांऊनी मैशअप के रूप में लेकर आये हैं नैनीताल के जया भट्ट,आस्था सिंह , सागर परिहार, आशीष राणा और करण बिष्ट। इनका यह वीडियो सांग सोशल मीडिया पर लोगों को खूब रास आ रहा है।
कुमांऊनी लोकगीत ‘झन दिया ब्योज्यू छाना बिल्लौरी’ तो आपने सुना ही होगा, जिसमें एक पिता से अपनी बेटी का ब्याह छाना बिल्लौरी न करने की अर्ज की जाती है। इस गीत में बताया जाता है कि छाना बिल्लौरी में ‘घाम’ धूप बहुत तेज होती है और वहां लोगों को लू लग जाती है।पारंपरिक गाने की धुन से अलग उत्तराखंड के इन युवा कलाकारों ने इसे एक अलग ही अंदाज में गाया है। इन सभी की मिली -जुली आवाज में यह गाना बिल्कुल अलग ही दुनिया में ले जाता है।कुमाँऊनी लोकगीत परंपरा को आगे ले जाने की इनकी इस पहल पर उत्तराखंड को गर्व है।