हल्द्वानी:ऐपण का नाम पिछले कुछ वक्त से उत्तराखण्ड में खूब वायरल हो रहा है। ऐपण शब्द का उत्तराखण्ड की संस्कृति में काफी महत्व है। यह एक ऐसी कला है जिसने पहाड़ से निकलकर शहरों में भी अपनी पहचान बना ली है। वहीं कुछ युवाओं ने इसे पलायन के खिलाफ हथियार भी बना लिया है और ऐपण डिजाइन कर रोजगार भी पा रहे हैं। ज्योलीकोट, तल्ला गैठियां में स्थित कर्तव्य कर्मा एनजीओ पिछले दो साल से खूब नाम कमा रहा है। खासकर महिलाओं को रोजगार देने की सोच ने एनजीओ को राज्य में एक अलग स्थान दे दिया है। एनजीओ में कार्यकृत महिलाएं कपड़े की ज्वैलरी बनाती है। पिछले साल महिलाओं के काम को बॉलीवुड स्टार वरूण धवन ने भी सहाराया था।
आज हम एक ऐसे समूह और बेटी के बारे में बताएंगे जिसने ऐपण बनाने के शौक को एक मुहिम से जोड़ दिया। नेहा आर्या समूह का युवा चेहरा हैं। उन्हें बचपन से ही ऐपण बनाने का शौक था। नेहा बताती है कि त्योहारों में ऐपण बनाने का एक अपना ही क्रेज होता था।
पहाड़ से लोग मैदान की ओर चले गए तो यह कला भी धूमिल होने लगी तो उन्होंने सोचा कि क्यों ना ऐपण को कला को रोजमारा की चीजों में दिखाया जाए। जैसे बैग,पेन स्टेंड, फोटो फ्रेम, किताब, लिफाफे, बुकमार्क और फाइल फोल्डर…
नेहा का कहना है युवा अपनी संस्कृति से जुड़ी चीजों के लिए हमेशा आकर्षित होते हैं और इस आइडिया में भी उन्हें ये दिखाई देने लगा। नेहा का कहना है कि ऐपण कला उत्तराखण्ड के लिए एक वरदान जैसी है और इसे बढ़ावा देने के लिए सरकार को आगें आना चाहिए। सरकारी ऑफिसों में भी उन वस्तुओं का इस्तेमाल होना चाहिए जिसमें ऐपण बनी हो।
ऐपण कला को लेकर आजकल फिर से लोगों में जागरुकता पैदा हुई है। नेहा ना सिर्फ ऐपण कला का शौक रखती हैं बल्कि कर्तव्य कर्मा के माध्यम से वो गाँव की दूसरी लड़कियों को भी ये कला सिखाने का काम कर रही हैं। नेहा ने पेंटिंग में एमए किया है। वो चाहती तो पेंटिंग की किसी भी विधा को अपना सकती थी लेकिन उन्होंने ऐपन को चुनकर उत्तराखण्ड की कला और संस्कृति को बचाने और बढ़ाने का काम किया।
नेहा के बनाए हुए प्रोडक्ट लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। कर्तव्य कर्मा एनजीओ से जुड़ी नेहा आर्या ऐपन की कला को Stationary पर उकेरती हैं। Stationary के अलावा बैग और पेंटिंग में भी ऐपण कला का प्रयोग होता है जिससे बने प्रोडक्ट लोगों को खूब भा रहे हैं।
कर्तव्य कर्मा की ये पहल इस कुमाऊँनी कला को आगे ले जाने का काम कर रही है। संस्था के संस्थापक गौरव अग्रवाल कहते हैं कि त्योहारों के वक्त आजकल घरों में STICKERS का प्रचलन काफी बढ़ गया है। पहले लोग देहली लिखते थे लेकिन अब बाजार से stickers लाकर उन्हें देहली, दरवाजों पर चिपका दिया जाता है। जिससे कला के प्रति लोगों का रुझान खत्म हो गया है और कला के मायने सिर्फ एक Sticker तक ही सिमट कर रह गए हैं।
वैसे भी अगर कला की बात करें तो मुधबनी, वर्ली और गोंड कला के मुकाबले ऐपण आर्ट बहुत पीछे खड़ी दिखाई देती है। लोग पहाड़ की इस अमूल्य कला को खोते जा रहे हैं और उसमें सबसे ज्यादा नुकसान stickers ही कर रहे हैं। कर्तव्य कर्मा एनजीओ इस मुहिम के साथ आगे बढ़ रहा है कि ऐपण कला को किसी ना किसी तरह बढावा मिले। जब तक हम अपने घर में ऐपण Stickers का इस्तेमाल करना बंद नहीं करेंगे तो अपनी कला और संस्कृति को हम यूँ ही खोते चले जाएंगे।