नई दिल्लीः राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होना तय हुआ था। इसके साथ ही कोर्ट में उस पीआईएल पर भी सुनवाई होना तय हुआ था, जिसमें मामले में देरी पर सवाल उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगले कुछ दिनों में इस मामले के लिए नई बेंच का गठन कर लिया जाएगा और 10 जनवरी को मामले को सुना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को दस बजकर 40 मिनट पर सुनवाई शुरू हुई थी। लेकिन राम मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में महज 60 सेंकड सुनवाई चली। इस दौरान किसी पक्ष से कोई दलील नहीं दी गई।
सुप्रीम कोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 10 जनवरी को होगी इसके लिए बेंच का गठन किया जाएगा जो इस मामले की सुनवाई करेगी। हिन्दू महासभा के वकील का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट 10 जनवरी इस मामले की सुनवाई करेगी। उसी वक्त यह तय किया जाएगा कि कौन सी बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। कोर्ट इसके लिए एक रेग्युलर बेंच का गठन करेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले को दोबारा सुनता है तो अगले 60 दिनों में इसका फैसला आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट 10 जनवरी को होने वाली सुनवाई में यह भी तय किया जाएगा कि इस मामले की सुनवाई कौन सी बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले की सुनवाई 10 जनवरी तक टाल दी है।
शुक्रवार की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ के सामने हुई। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि का सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बंटवारा करने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 29 अक्टूबर को कहा था कि यह मामला जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगी। बाद में अखिल भारत हिन्दू महासभा ने एक अर्जी दायर कर सुनवाई की तारीख पहले करने का अनुरोध किया था, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि 29 अक्टूबर को ही इस मामले की सुनवाई के बारे में आदेश पारित किया जा चुका है। हिन्दू महासभा इस मामले में मूल वादकारियों में से एक एम सिद्दीक के वारिसों द्वारा दायर अपील में एक प्रतिवादी है। गौरतलब है कि इससे पहले 27 सितंबर 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2-1 के बहुमत से 1994 के एक फैसले में की गई अपनी टिप्पणी पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को पांच न्यायमूर्तियों की खंडपीठ के पास भेजने से इंकार कर दिया था।