देहरादून: सभी राजनीतिक दल महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े वादे तो करते हैं। लेकिन ये वादे केवल बातों में ही उलझ कर रह जाते हैं। इस बार उत्तराखंड की तो यही कहानी रही है। प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए केवल 7.1 फ़ीसदी महिला प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है। जी हां, प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों पर केवल 45 महिलाएं विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में हिस्सा लेंगी।
31 जनवरी को नामांकन वापसी की आखिरी तिथि के बाद चुनावी मैदान की तस्वीर साफ हो चुकी है। प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों पर 632 प्रत्याशी मैदान पर हैं। जिनमें 587 पुरुष जबकि 45 महिलाएं शामिल हैं। बता दें कि उत्तराखंड में 2 जिले चंपावत और बागेश्वर ऐसे भी हैं, जहां पर कोई भी महिला प्रत्याशी चुनावों के लिए खड़ी नहीं हुई है।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड की राजनीति में महिलाएं सक्रिय नहीं रहतीं। महिलाएं चाहे मतदाता की भूमिका में हों या फिर एक राजनेता की, वह हमेशा एक सक्रिय भूमिका निभाती हैं। लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले में इस बार महिला प्रत्याशियों की संख्या में कमी आई है। 2017 के चुनावों में 637 प्रत्याशियों में से 62 प्रत्याशी महिलाएं थीं।
हालांकि उन चुनावों में पुरुष प्रत्याशियों की संख्या 573 थी, जो अब बढ़कर 587 हो गई है। गौर करने वाली बात यह भी है कि पिछली बार दो थर्ड जेंडर प्रत्याशी भी मैदान पर थे। लेकिन इस बार ऐसा कोई नहीं है। बता दें कि देहरादून में 10 महिला प्रत्याशी चुनाव लड़ रही है तो वहीं पौड़ी जिले में छह, उधम सिंह नगर में पांच, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, नैनीताल व हरिद्वार जिले में चार चार महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान पर हैं।
टिहरी गढ़वाल में तीन, रुद्रप्रयाग में दो और चमोली में दो महिला प्रत्याशी विधानसभा चुनावों में अपना लोहा मनवाने के लिए कोशिशें कर रही हैं। वहीं उत्तरकाशी में एक महिला प्रत्याशी ने चुनावी ताल ठोकी है। एक तरफ जहां राजनीतिक दल हमेशा महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद करते हुए चलते हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में केवल 7 फ़ीसदी महिलाओं का प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना यह दिखाता है कि कहीं ना कहीं कोई गड़बड़ी हो रही है। अगर महिलाएं आगे नहीं आएंगी तो महिला सशक्तिकरण की बात भी महज़ बात बन कर रह जाएगी।