हल्द्वानी: भास्कर जोशी: राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला विकासखंड धौलादेवी में बाल पर्व फूल देई का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। पहाड़ की यह अनूठी बाल पर्व की परम्परा है जो मानव और प्रकृति के बीच के सम्बन्धों का प्रतीक है। सुविधाओं की तलाश में व आधुनिकता के ढोंग में आज हमारे शहरों से तो ये परंपरा समाप्त हो गयी है कारण तो बहुत से है पर एक कारण। जानता हूं वह है लोगो का शहरों की तरफ पलायन और वहाँ पहुँच कर स्वयं को अन्य वर्गों से हीन समझ कर कुंठित जीवन जीना और बनावटी आधुनिकता का चोगा पहन कर रखना ।बहरहाल मेरे जैसे ठेठ पहाड़ियों के वहाँ आज भी ये पर्व मनाया जाता है तो देख कर अच्छा लगता है कि कुछ लोग अपनी थाती से ज़ुड़े रहने में ही जीवन का आनंद समझते है। लुप्ति की कगार पर खड़ा यह बाल पर्व अब पहाड़ो मे भी बहुत उत्त्साह से नही मनाया जाता फिर भी शहरों के मुकाबले मे यहाँ उम्मीद बाकी सी लगती है।
इसे बढ़ावा देना चाहिए फूल देई ही क्यों सभी प्राचीन परम्पराओ को बचाने के लिए आम जन मानस , बुद्दिजीवियों को आगे आना चाइए सरकार को निति तय करनी होगी और स्कूलों मे बच्चों को इस बालपर्व फूलदेई को मनाने के लिए प्रेरित किया जाए। इस परम्परा से संबन्धित लेख या कविताओं को नौनिहालों के पाठ्यक्रम मे शामिल किया जाय ताकि इसे व्यापकता प्रदान हो सके। पुराने पाठ्यक्रम में तो कुछ पाठ थे जो हमारी संस्कृति का परिचय बच्चों से कराते थे बच्चें भी बड़े मजे से उन पाठों का रसास्वादन किया करते थे पर NCERT के पाठ्यक्रम मे तो संस्कृति की कोई छुवन मैंने महसूस नही की ,बहुत अच्छा होता यदि NCERT के पाठ्यक्रम के साथ साथ उत्तराखंडी संस्कृति से संबंधित कोई पाठ्यपुस्तक भी साथ मे लगी होती तो बहुत बेहतर होता क्योंकि हमारी प्राचीन सांस्कृतिक परम्परायें मुख्य रूप से धर्म और प्रकृति से जुड़ी है।
यहाँ के हर त्योहार मे प्रकृति का महत्व झलकता है, विद्यालय में इस पर्व को मनाने का उद्देश्य मात्र इतना था कि बच्चें विद्यालय मे हो रही हर गतिविधि मे कारण ढूढ़ते है ,उन्हें महत्व देतें है और उनमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतें है ,मैं समझता हूं कि विद्यालय सबसे महत्वपूर्ण संस्थाएं है जो लुप्त प्राय से हो चुकी हमारी थाती को पुनः प्राणोर्जित कर सकें। इसी क्रम में राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला शुक्रवार को विद्यालय मे विशेष प्राथना सभा का आयोजन किया गया व बच्चों को फूलदेई परम्परा के बारे मे बताया, बच्चों ने अपने हाथों से फूलों की टोकरियों का निर्माण किया व अपनी अपनी टोकरियों को सजाया तदुपरांत पूरे विद्यालय की देहरीयों को सजाया ।