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भोले बाबा और देवभूमि का नाता…शिवरात्रि पर जानिए उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और चमत्कारिक शिव मंदिर


हल्द्वानी: हमेशा की तरह महाशिवरात्रि के पर्व पर शिव भक्तों में गजब का उत्साह दिखाई देने लगा है। इस पर्व को लेकर शिव पुराण में कई रोचक कथाओं का जिक्र किया गया है। एक कथा के मुताबिक शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने कठिन तप किया था और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उन्होंने मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसी दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

देवभूमि उत्तराखंड से भी भगवान शिव का नाता रहा है। वैसे भी उत्तराखंड को देवभूमि का दर्जा ऐसे ही नहीं दिया गया। यहां कई प्राचीन और चमत्कारिक शिव मंदिर हैं। जहां देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं और भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड को शिव की तपस्थली माना जाता है। यहां हिमालय पर साक्षात भगवान शिव का निवास है। शिव जी का ससुराल भी यहीं बताया जाता है। शिवरात्रि के पावन पर्व पर आज हम ऐसे ही प्राचीन मंदिरों की सूची आपके साथ साझा करना चाहते हैं…

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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Temple)

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम भी उत्तराखंड में ही है। केदारनाथ को भगवान शिव का घर कहा जाता है। केदारनाथ मंदिर तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। मंदिर के पीछे बर्फ का पहाड़ सूरज की किरणों के बीच से बेहद खूबसूरत नजारा देता है। केदारनाथ में हर साल भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple)

रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। पंच केदार में शामिल तुंगनाथ मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता ये है कि इस मंदिर में ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने पूजा की थी और मंदिर का निर्माण करवाया था। हजारों साल पहले से पहाड़ों की चोटी पर बसा हुआ मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की उंचाई पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर के कपाट अप्रैल-मई से खुलते हैं जबकि दिवाली के बाद इसके बंद कर दिए जाते हैं।

बालेश्वर मंदिर चंपावत (Baleshwar Temple)

चंपावत में स्थित बालेश्वर मंदिर भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण 1272 के दौरान चंद वंश द्वारा किया गया था। 1670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित की वास्तुकला और नक्काशी से ही इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है। बता दें कि मंदिर की वाह्य दीवारों में ब्रह्मा विष्णु महेश अन्य देवी-देवताओं के चित्र और मंदिर के बाहर अष्टधातु का एक घंटा भी लटका है जिस पर कर्ण भोज चन्द चंदेल का नाम अंकित है।

रुद्रनाथ मंदिर (Rudranath Temple)

गढ़वाल के चमोली जनपद में स्थित भगवान शिव का एक और प्राचीन मंदिर रुद्रनाथ मंदिर पंच केदार में शामिल है। रुद्रनाथ  मंदिर समुद्र तल से 2220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आपको पता होगा कि शिव के पूरे धड़ की पूजा पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाल) में की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर के भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है।

नीलकंठ महादेव (Neelkanth Mahadev)

ऋषिकेश से 32 किलोमीटर दूर जंगल के पास स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि हजारों साल पहले अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया। जिसमें विष निकला, जिसे भगवान शिव ने पी लिया। इससे उनका गला नीला हो गया। बताया जाता है कि जहां भोले बाबा ने विष पान किया था, वहीं पर नीलकंथ महादेव का मंदिर स्ठापित हो गया।

बैजनाथ मंदिर (Baijnath Temple)

गोमती नदी के पावन तट पर बसे बैजनाथ मंदिर में मान्यता है कि यहां भगवान बैजनाथ से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है। 1204 ईस्वी में निर्मित हुए बैजनाथ मंदिर की वास्तुकला और दीवारों की नक्काशी बेहद आकर्षक है। यह मंदिर बागेश्वर में है। देवभूमि में और भी ऐसे शिव मंदिर हैं, जिन्हें प्राचीन माना जाता है। ये मंदिर इस बात की पुष्टि करते हैं कि देवभूमि में बाबा महाकाल ने काफी अधिक समय व्यतीत किया है।

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