हल्द्वानी: पंकज पांडे: विशाखापट्टम टेस्ट रोमांच स्थिति में पहुंच चुका है। साउथ अफ्रीका ने सभी को चौकाते हुए भारतीय स्पिनरों का शानदार तरीके से सामना किया। रन भी बनाए वो भी तेजी से। भारत के 502 रनों के जवाब में उसने तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक 8 विकेट पर 385 रन बना दिए। किसी ने सोचा नहीं होगा कि साल 2015 में बुरी तरह हारने वाली अफ्रीका इस बार कुछ ऐसा कर देगी। डीन एल्गर के 160, फाफ डु प्लेसिस के 55 और क्विंटन डी कॉक 111 की पारियां टीम इंडिया को जरूर डरा रही है। ऐसा ही कुछ साल 2012 में इंग्लैंड ने किया था। अंग्रेजों को हल्के में भारत के लिए भारी पड़ा और टीम को 1-3 से हार का सामना करना पड़ा। साल 2004 के बाद भारत पहली बार घर पर सीरीज हरा था। साल 2004 में गिलक्रिस्ट की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने दो शतक के बाद भारत में टेस्ट सीरीज जीती थी।
साल 2012 में दिवाली के बाद इंग्लैंड टीम के बारे में सब यही सोच रहे थे कि भारत इसे आसानी से हरा देगा लेकिन हुआ उल्टा। टीम इंडिया ने शुरुआत तो अच्छी की। पहला टेस्ट अहमदाबाद में खेला गया था जो उसने 9 विकेट से जीता। लेकिन मैच की दूसरी पारी में कप्तान एलस्टर कुक ने 176 रनों की पारी खेली और पूरी टीम को आत्मविश्वास से भर दिया। भारत ने पहली पारी में 521 रन बनाए थे, जवाब में इंग्लैंड की पहली पारी 191 पर ऑल आउट हो गई थी। फॉलोऑन खेलने उतरी तो उसने दूसरी पारी में 406 रन बना डाले और भारत को डारने के लिए काफी थे। जिस तहर की पारी कुक ने खेली थी वही पारी एल्गर खेल चुके हैं। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में कुक पीटरसन, ट्रोट और बेल ने खूब रन बनाए थे। इंग्लैंड ने मुंबई और कोलकाता टेस्ट जीतकर इतिहास रचा था। मौजूदा साउथ अफ्रीका टीम भी कुछ इसी दिशा में निकलती पड़ती दिखाई दे रही है। ये बात भी नहीं भूल सकते हैं कि इंग्लैंड के पास ग्रैम स्वान और मोंटी पानेसर थे और इस तरह के गेंदबाज साउथ अफ्रीका के पास नहीं है।
उस वक्त टीम अतिआत्मविश्वास का शिकार हुई थी, भारतीय फैंस चाहेंगे कि विराट एंड कंपनी साउथ अफ्रीका के इस प्रदर्शन को गंभीरता से ले नहीं तो नतीजे 2012 सीरीज जैसे हो सकते हैं।