रुद्रपुर: बैडमिंटन खिलाड़ी मनोज सरकार ने इतिहास रच दिया। टोक्यो पैरा ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया है। मनोज टोक्यो में कमाल करेंगे, ये पूरे उत्तराखंड को पता था। तभी तो जब उन्हें पहले मैच में हार का सामना करना पड़ा, तब भी उत्तराखंड के लोगों को कोई निराशा नहीं थी। पहले मैच में हार के बाद भी मनोज ने कांस्य पदक हासिल किया। ओलंपिक में पदक हासिल करना हर खिलाड़ी का सपना होता है।
पहले मैच में मनोज को भारत के प्रमोद भगत ने हराया। दूसरे मुकाबले में मनोज सरकार ने युक्रेन के अलेक्जेंडर को आसानी से 2-0 से हराकर सेमीफाइनल मुकाबले के लिए क्वालीफाई किया था लेकिन सेमीफाइनल मुकाबले में यूके के डेनियल बेथल ने उन्हे 21-8, 21-20 से हरा दिया। इसके बाद मनोज के पास पदक हासिल करने का आखिरी मौका था। उन्होंने मौके को खराब नहीं होने दिया। मनोज सरकार ने जापान को देयसुख 22-20, 21-13 से हराया।
मनोज सरकार ने देश को मेडल जिताया और उत्तराखंड के लिए इससे बड़ी बात कुछ हो नहीं सकती थी। मनोज सरकार की जीत के बाद पूरे उत्तराखंड में जश्व का माहौल है। प्रतिभावान खिलाड़ी मनोज सरकार के लिए खेल के मैदान पर कामयाबी बिल्कुल भी आसान नहीं थी।
13 माह की उम्र में मनोज सरकार को एक गलत इंजेक्शन दे दिया गया था। इस गलत इलाज ने उनका पूरा जीवन बदल दिया। उनका पैर कमजोर हो गया। परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और बड़े हॉस्पिटल में इलाज भी नहीं करा पाया। बड़े होते होते मनोज ने खेल के प्रति अपना रुझान दिखा दिया था। मां मजदूरी करती थी, इसके बाद भी उन्होंने बच्चे को खेलने से रोका नहीं। जो वह कर सकती थी वो मनोज के लिए उन्होंने किया।
मां जमुना सरकार ने बैडमिंटन खरीदकर दिया। मनोज का पैर कमजोर था और कई बार उनके साथ के लोग उनका मजाक बनाते थे। अगर उनकी शटल टूट जाती थी तो उन्हें खेलने नहीं देते थे। इन चीजों से मनोज काफी परेशान हो गए थे और खेल को छोड़ने का फैसला भी कर लिया था। पर कहते है ना आप अपने प्यार से ज्यादा दिन दूर नहीं रह सकते हैं। ऐसा ही कुछ मनोज के साथ हुआ। हाईस्कूल के दिनों की बात है। पढ़ाई के बाद जो भी वक्त मिलता था मनोज उसमें बैडमिंटन खेलते थे। टीवी पर वह खिलाड़ियों को खेलता देखते थे और फिर अभ्यास करते थे। वह सामान्य खिलाड़ियों को भी आराम से हरा देते थे।
अभ्यास के लिए खर्चा तो आता है। इसके लिए मनोज ने कभी परिश्रम करने से बहाना नहीं बनाया बल्कि चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने बचपन में पंचर जोड़ने, खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने और घरों में पीओपी के काम करने पड़े थे। उन्होंने बैलगाड़ी से मिट्टी की ढुलान भी की। कहते है ना जब नतीजे मिलने लगते हैं, मेहनत दोगुनी हो जाती है ऐसा ही कुछ मनोज के साथ हुआ। अंदाजा इस बात ये लगाया जा सकता है मनोज ने 33 देशों में आयोजित हुई इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और 47 पदक भी हासिल किए हैं। इसके अलावा उन्हें भारत सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया है। मनोज सरकार अपने कामयाब करियर के लिए डीके सेन ने दिखाई राह, कोच गौरव सर को श्रेय देते हैं।