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हल्द्वानी:परिवार ने ईजा के नाम से शुरू किया काम, नथ-गुलोबंद को बड़े शहरों में पहुंचाना हुआ आसान

EJA JEWELS: HALDWANI: UTTARAKHAND CULTURE: कोरोना काल मनुष्यजाति के लिए अभिशाप की तरह रहा। महामारी के दो वर्षों में कई लोगों ने अपनों को खोया, लोगों को घर से बाहर निकलने में डर लगता था। अतिथियों का स्वागत करने वाली संस्कृति से हम दूर हो गए थे। ये था कोरोना काल का नकारात्मक पहलू लेकिन जब दूसरी दिशा की तरफ देखते हैं तो कई सकारात्मक चीजे भी हुई है। उत्तराखंड की बात करें तो कोरोना काल में सबसे ज्यादा स्टार्टअप शुरू हुए। घर के अंदर बैठकर लोगों ने खुद के लिए वक्त निकाला और जब हालात सामान्य हुए तब वो नए लक्ष्य की ओर निकल चुके थे। और उन्हें अब पहचान भी मिल गई थी।

विस्तार

ईजा नाम से उत्तराखंड के लोग अच्छी तरह से परिचित हैं। अपनी मां के काम से हर बच्चा प्रभावित होता है और बड़ा होकर उनके लिए कुछ करना चाहता है। यहां भी कुछ ऐसा ही है…. हालांकि एक प्यार अपनी जड़ों से भी है तो वर्षों पहले पिता ने मजबूत की थी। हल्द्वानी के रहने वाले पार्थ खंडेलवाल ने सीए बनने के बाद नौकरी छोड़ दी और फिर पहाड़ की धरोवर को हर घर का हिस्सा बनाने की मुहिम में जुट गए।

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ईजा नाम से शुरू किया काम

हल्द्वानी लाइव सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर है। ऐसे ही हमे इंस्टाग्राम पर ईजा स्टूडियों नाम से अकाउंट मिला। वहां से मिले नंबर पर संपर्क किया और पार्थ खंडेलवाल ने हमे पूरी कहानी बताई जो अब हम आपको बताएंगे। पार्थ ने नैनीताल के विख्यात कॉलेज से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने बताया कि 2007 के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना पड़ा। वहां वो सीए की तैयारी कर रहे थे। पार्थ ने बताया कि वो रहते दिल्ली में रहता थे लेकिन दिल हल्द्वानी की तरफ था। साल 2011 में सफलता मिली और सीए परीक्षा उत्तीर्ण हो गई। एक साल दिल्ली में नौकरी की और 2012 में उसे छोड़कर हल्द्वानी में ज्वैलरी के काम से जुड़ गए।

व्यापार समझना था बड़ी चुनौती

पार्थ कहते हैं कि कुछ वर्ष तो काम समझने में लगे। फिर धीरे-धीरे चीजे पटरी पर लौटने लगी। पिता की एक साख थी, उनके व्यवहार को लेकर अभी भी कई पुराने ग्राहक बात करते हैं। उनके वहां पहाड़ी ज्वैलरी को लेकर अधिक काम होता है। ईजा स्टूडियों की शुरुआत भी ऐसे ही हुई। ज्वैलरी घर में माताएं पहनती हैं और ये पीढ़ी दर पीढ़ी घर का हिस्सा बनें रहती हैं। दूसरी तरफ मां ने जिस तरह से घर और काम संभाला ,वहां से प्रेरित होकर ईजा नाम से काम की शुरुआत की गई।

साल 2018 सोचा और 2020 में पूरा किया

पार्थ खंडेलवाल ने बताया कि ” कुछ नया करना है, इसको लेकर ख्याल 2018 में आया था लेकिन काम के दवाब के चलते तुरंत कर पाना मुश्किल था। फिर कोरोना आया गया, हम लोग घर में खाली थे। दुकाने बंद थी तो हमें लगा कि ये काम किया जा सकता है। सोशल मीडिया की मदद से ईजा स्टूडियों को लांच किया और मकसद था कि इस ब्रांड में हम सिल्वर ज्वैलरी पर काम करेंगे , जिसे कॉरियर के माध्यम से पूरे देश में ग्राहकों तक पहुंचाया जा सकें।””

500 रुपए से हुई ईजा ज्वैलरी की शुरुआत

साल 2020 में हमें कुछ 50-100 लोगों ने सिल्वर ज्वैलरी को लेकर संपर्क किया क्योकि सोशल मीडिया पर हम प्रचार कर रहे थे। हमने केवल 500 रुपए में ऑर्डर बुक किए और काम चल पड़ा। पार्थ ने दोहराया कि परिवार से व्यापार में भरोसे को लेकर जो पाठ सीखा था वो काम आया। ग्राहक ने हम पर भरोसा किया और हमने केवल 500 रुपए में 5000-7000 तक की ज्वैलरी बनाना शुरू किया। कोरोना के बाद जब बाजार खुला तो हमारा काम ग्राहकों तक पहुंचने लगा।

ईजा ज्वैलरी तक कैसे पहुंचे ग्राहक

पार्थ खंडेलवाल ने बताया कि ईजा स्टूडियों को आगे बढ़ाने में उनकी पत्नी मधुरिमा सिंह और बहन पार्थवी खंडेलवाल का भी सहयोग मिला है। मौजूदा वक्त में ईजा स्टूडियों ब्रांड के अंदर हम 125 से ज्यादा ज्वैलरी लांच कर चुके हैं। अगले साल तक ये आंकड़ा 250 तक पहुंच जाएगा। इनमें खासकर पहाड़ की पौंजी, नथ, मटरमाला, गुलबंद की डिमांड ज्यादा है। हम चाहते हैं कि राजस्थान की कुंदनकली की तरह पहाड़ की ज्वैलरी को भी विश्वभर में पहचान मिले। 2020 के बाद से बेंगलूरू, दिल्ली और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में एग्जीबिशन में हमने हिस्सा लिया है। दूसरे राज्यों के लोग भी पहाड़ी ज्वैलरी की तरफ आकर्षित होते हैं। इसी वजह से ईजा ज्वैलरी के प्रोडक्ट्स लगातार बढ़ रहे हैं। हम इस ब्रांड को हर घर का हिस्सा बनाना चाहते हैं। ज्वैलरी का डायरेक्ट कनेक्शन मां से है और मां से घर है।

पार्थ खंडेलवाल ने जानकारी दी कि हमारे सभी लांच ज्वैलरी https://ejaa.in/ पर मौजूद हैं। देश के किसी हिस्से से ग्राहक इसे खरीद सकते हैं। हम कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन भी देते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से भी संपर्क कर सकते हैं।

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