वह बख्शा धीवर कोट जा पहुंचा। धीवर के जाल में वह बख्शा फंस गया। धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा। उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया। इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा।बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया। कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनों से दूध की धार फूट पड़ी। बालक नए नए चमत्कार दिखाता गया। उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी। एक बार बच्चों ने अपने पिता से चंपवात जाने की बात कही। इसके लिए उसने पिता से घोड़ा मांगा। पिता ने बेटे को लकड़ी का लोहा दे दिया। एक दिन लड़का लकड़ी का घोड़ा लेकर काली गंगा के उस पार घूम रहा था।
वहीं रानी कालिंका अपनी सातों सौतों के साथ नहाने के लिए आई हुई थीं। बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने घोड़े को पानी पिलाने लगा।रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है कि वह लकड़ी के घोड़े को पानी पीला रहा है। गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा पैदा हो सकता है तो का का घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता? यह बात राजा हलराय तक पहुँचते देर न लगा। राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है। गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है। कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई उधर। राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी।राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया और खुद सन्यास को चले गए। मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू, द्वा गोलू , घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं। उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम देवता की बहिन थी।
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