Nagarkoti Family Story: Haldwani कहते हैं सफलता उसी के कदम चूमती है जो मेहनत के रास्ते पर चलता है। हल्द्वानी की एक ऐसी ही कहानी है, जहां पर एक परिवार से एक नहीं बल्कि तीन-तीन बच्चों ने मेहनत का रास्ता अपना कर सफलता प्राप्त कर ली।
हल्द्वानी में मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले नगरकोटी भाई–बहनों ने अपनी सफलता से केवल अपने परिवार का ही नहीं बल्कि उत्तराखंड राज्य का नाम भी रोशन किया है।
पंतनगर विश्वविद्यालय में आयोजित हुए 35वे दीक्षांत समारोह में हल्द्वानी तीनपानी की रहने वाली कीर्ति नगरकोटी को भी डिग्री देकर सम्मानित किया गया। इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु भी मौजूद रही। कीर्ति ने केमिस्ट्री विषय से पीएचडी की और वह अभी अस्थाई तौर पर पंतनगर में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में सेवा दे रही हैं।
बचपन से पढ़ाई में मेधावी छात्रा रहीं कीर्ति ने ना सिर्फ अपना करियर बनाया बल्कि दो छोटे भाइयों को भी दिशा दी। उत्तराखंड परिवहन विभाग में कार्यरत गोविंद सिंह नगरकोटी के बच्चों की कामयाबी की कहानी उत्तराखंड के युवाओं को प्रेरणा देगी। कीर्ति, विशाल और मयूर ने परिश्रम से वह मुकाम हासिल किया है, जिसकी कल्पना कई युवा करते हैं।
प्रोफेसर कीर्ती नगरकोटी
तीनों भाई बहनों ने हल्द्वानी के केंद्रीय विद्यालय से स्कूली शिक्षा हासिल की। पंतनगर से पीएचडी करने से पहले कीर्ति नगरकोटी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीएससी की और पंजाब यूनिवर्सिटी से एमएससी की पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने नेट जेआरएफ और गेट परीक्षा में भी कामयाबी हासिल की।
विशाल नगरकोटी- आईआईटी के बाद इसरो और फिर आईआईएम
वहीं भाई विशाल नगरकोटी ने आईआईटी पटना से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसके बाद इसरो में बतौर वैज्ञानिक 3 साल काम किया। 2020 में विशाल नगरकोटी का चयन आईआईएम लखनऊ में हो गया। 2022 में एमबीए पूरा करने के बाद वो Dalberg Advisors में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सेना में ऑफिसर मयूर नगरकोटी
सबसे छोटे भाई मयूर ने साल 2012 में हाईस्कूल और साल 2014 में इंटर परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर उनका चयन एनडीए में हो गया। 3 साल पुणे में ट्रेनिंग करने के बाद मयूर 2018 में आईएमए पासिंग आउट परेड का हिस्सा बने और मौजूदा वक्त में कैप्टन मयूर नगरकोटी लेह लद्दाख में तैनात हैं।
अपने बच्चों की कामयाबी के बारे में पिता गोविंद सिंह नगरकोटी कहते हैं कि हर माता-पिता की तरह हमने अपने बच्चों को पढ़ाई का माहौल दिया। आज वो कामयाब है, इसके पीछे उनकी मेहनत है। युवा अवस्था में बच्चों का ध्यान अपने लक्ष्य की ओर होना जरूरी है। हमने बच्चों पर कभी अपनी इच्छा का भार नहीं डाला। उन्होंने अपने हिसाब अपने सपनों का चयन किया और कामयाबी प्राप्त की।