नैनीताल की खूबसूरती को सबसे पहले दुनिया से परिचित कराने और नैनीताल को बसाने का श्रेय अंग्रेज़ यात्री, लेखक और व्यापारी पी बैरन को जाता हैं, वे अपनी यात्राओं अनुभव से जुड़े लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में पिल्ग्रिम नाम से भेजा करते थे। पी बैरन सन 1839 में केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा करने के बाद ये कुमाऊँ की ओर बढ़ते हुए, खैरना पहुंचे। खैरना नैनीताल से 30 किलोमीटर दूर, रानीखेत/ अल्मोड़ा जाने वाली रूट मे एक छोटा सा खूबसूरत कस्बा हैं। सैलानियों का नैनीताल आने का सिलसिला पूरे सालभर चलता है। ब्रिटिश काल में नैनीताल की पहचान ब्रिटेन की समरकैपिटल के रूप में होती थी। नैनीझील का इतिहास भी काफी पुराना है, जो स्थानीय लोगों को रोजगार भी देता है।
पी बैरन को खैरना में, वहाँ से दिखने वाली पहाड़ी – ‘शेर का डाण्डा’ की जानकारी मिली, स्थानीय लोगों ने बताया कि – उस पहाड़ी के पीछे एक सुंदर ताल भी हैं। घना जंगल और हिंसक पशुओं के कारण उस समय वहाँ लोग कम ही जाते थे।
शेर का डांडा मे – डांडा शब्द स्थानीय बोली में कहें जाने वाले शब्द ड़ाना या डान से बना हैं, जिसका अर्थ हैं – पहाड़ी यानि रिज, शेर का डांडा यानि – ऐसी पहाड़ी जहां tiger फॅमिली के सदस्य रहते हैं।
साहसिक पर्यटन के शौकीन ‘पी बैरन’ ने कुछ स्थानीय लोगोको अपने साथ चलने को तैयार किया और ट्रेक करके समुद्र तल से 2350 मीटर ऊंची ‘शेर का डांडा’ पहुचे,सुंदर पहाड़ी और यहाँ से से खूबसूरत ताल को देखकर वह मंत्र मुग्ध हो गए, जो ताल उन्होने शेर का डांडा पहाड़ी से देखा, उसे ही आज हम नैनीताल नाम से जानते हैं।