रुड़की: दीपावली का असली मतलब भले ही दीपों की रौशनी से है। मगर आजकल दीयों की कद्र पहले जैसी नहीं रहीष अब हर तरफ चाइनीज झालरों का ही चलन है। हालांकि बीते कुछ समय में माहौल बदला है। साथ ही कई लोग भी आगे आए हैं जो क्रिएटिव तरह से दीए बनाकर मार्केट को एक स्कोप दे रहे हैं। इसी कड़ी में रुड़की में बने दीयों से लंदन की दीपावली रौशन होने वाली है।
दरअसल दीए बनाने वाले लोग आर्थिक सक्षमता ना होने के चलते इस काम को छोड़ रहे हैं। मगर ऐसे में ही झबरेड़ा के कुंजा बहादरपुर निवासी सतीश प्रजापति जैसे लोग भी हैं, जो सांस्कृतिक पहलु को संजोकर रखे हुए हैं। दिल्ली के एक कारोबारी ने लंदन के लिए स्पेशल दीयों की मांग की थी, जिसका स्टॉक एक सप्ताह पहले रवाना किया जा चुका है। अब सतीश प्रजापति को और भी ऑर्डर मिले हैं।
दीपावली के नजदीक आते ही हर कोई घरों को सजाने में जुट गया है। विभिन्न प्रदेशों के अलावा इस बार विदेश में भी हाथ से बने दीयों की मांग है। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले सतीश प्रजापति ने बताया कि हर वर्ष दीपावली पर यूपी, पंजाब और दिल्ली से दीयों की मांग आती थी, लेकिन इस बार दिल्ली के एक कारोबारी ने लंदन के लिए स्पेशल दीये तैयार करने का ऑर्डर दिया था।
उन्होंने बताया ऑर्डर एक हफ्ते पहले भेज दिया गया है। गौरतलब है कि सतीश खुश हैं कि उनके द्वारा बनाए दीये इस बार लंदन की दीपावली रोशन करेंगे। यह उनके लिए काफी गर्व की बात है। लंदन के लिए विशेष तरीके से उन्होंने एक हजार दीये तैयार किए हैं। बता दें कि इन दीयों को मिट्टी से बनाने के बाद जलने के लिए मोम का भी प्रयोग किया गया है।
एक दीये की कीमत वैसे 60 रुपये है मगर लोकल के लिए पांच से 50 रुपये की कीमत तक के दीये बनाए गए हैं। शेरू प्रजापति ने बताया कि इस बार मिट्टी के दीयों की मांग अधिक है। आपको बता दें कि कुंजा बहादुरपुर की दोमट मिट्टी के जैसे बर्तन कहीं और की मिट्टी से नहीं बनते। अन्य गांवों के कुम्हार भी इस गांव से मिट्टी लेकर जाते हैं।
अब यहां सब हाईटेक हो गया है। चाक बिजली की मोटर से चलते हैं। पहले वाले चाक से मॉडर्न चाक तीन गुना ज्यादा काम करता है। इससे उत्पादन दर भी बढ़ गई है। हाईटेक चाक से मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने का रुझान युवाओं में भी देखा जा रहा है। जिससे उत्पादन बढ़ाने में फायदा मिला है। उत्तराखंड का यह गांव दीपावली के मूल को बचाए रखने में आगे बढ़ रहा है।