
उत्तरकाशी: सीमांत जनपद उत्तरकाशी की चारों घाटियों की पौराणिक संस्कृति आज भी वैसे ही जीवंत है जैसे पौराणिक काल में थी। इसी संस्कृति का प्रतीक है गुरु चोरंगी नाथ का मेला…जो तीन साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
मेला गाजणा क्षेत्र के पांच गांवों…चोडियाट, दिखोली, सोड, लोडाडा और भेटियारा में आयोजित होता है। इस दौरान हजारों श्रद्धालु देवताओं के आर्शीवाद के लिए और ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा निभाने के लिए पहुंचते हैं। प्रत्येक गांव में मेले के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है और घर-घर में श्रद्धालुओं के लिए पकवान तैयार किए जाते हैं। हर श्रद्धालु को देवता का अंश मानकर भोजन कराया जाता है। मेला प्रांगण में श्रद्धालुओं की गिनती कर भोजन को बराबर हिस्सों में बांटा जाता है।
अनोखी परंपरा: मेले में देवता के अलावा कोई मुख्य अतिथि नहीं होता। प्रत्येक श्रद्धालु को देवता का रूप माना जाता है और सम्मान उसी अनुसार किया जाता है। जात-पात का कोई भेदभाव नहीं होता।
मेला पांच दिन तक चलता है…जिसमें सुबह से पूजा-अर्चना और देव डोलियों के साथ नाच-गाना होता है। दोपहर में हर श्रद्धालु को भोजन कराया जाता है। मेले का मुख्य आकर्षण है गुरु चोरंगी नाथ के साथ चलने वाले बीर हलुआ देवता, जो बिना हाथ लगाए 8-10 किलो भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के पश्चात देवता श्रद्धालुओं को विच्छू घास (कंडाली) लगाते हैं। मान्यता है कि जिसे यह कंडाली लगती है….वह तीन साल तक भूत-प्रेत और काली शक्तियों से सुरक्षित रहता है। हर श्रद्धालु इसे लगवाना सुनिश्चित करता है।
इस धार्मिक आध्यात्मिक और अतिथि देवो भव की परंपरा का आप भी 9 नवम्बर से साक्षी बन सकते हैं।






